आत्म ज्ञान
आत्म ज्ञान
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सब कुछ दिया प्रभु तुमने हमको
फिर भी मन क्यों इतना उदास है।
मानव जीवन का ध्येय न समझा
आत्म सुख की बस तलाश है।।
खूब पता है मुझको इतना
संसार से एक दिन जाना है।
रहने की रीति-प्रीति न जानी
सद्गुरु मात्र एक ठिकाना है।।
बड़ा कठिन लगता यह जीवन
सूझ न पड़ता अब कोई किनारा।
डगमगाती ये नैया बीच भंवर में
गुरु चरणों का बस एक सहारा।।
खौफ मौत का नहीं है इतना
जितना कठिन तुम को पाना है।
पाकर तुमको उसने फिर जाना
"आत्मज्ञान" ही असली खजाना है।।
दुनिया की दौलत अब फीकी लगती
गुरु नाम का "नीरज" दीवाना है।
इल्मे- रूहानी उसको ही मिलती
गुरु में जिसको मिल जाना है।।
