आशिक की नजर से
आशिक की नजर से
सो एक रोज़ यह हुआ
वफ़ा पे बहस छिड़ गई
मैं, इश्क़ को अमर कहूँ
वो मेरी जिद्द से चिढ़ गई
मेरा इश्क़ भी ताउम्र था
वो इश्क़ को बदचलन कहे
मैं कहूँ की उम्र भर चाहूँ तुझे
वो कमबख्त इसे हवस कहे
इतवार या जुम्मा नहीं कि हम
तुझपे सवार चमचमात रहूँ
न ढोर हूँ कि रस्सियाँ
गले मे डाल तेरा भ्रमण करूँ
मैं हूँ नही पेंटिंग कोई
की तेरे उसूलों के फ्रेम में रहूँ
मैं हूँ स्वतंत्र आशिक़ की
ताउम्र प्रेम में रहूँ
तुम्हारी सोच चाहे जो भी हो
मेरा वैसा मिज़ाज हरगिज़ नहीं
मुझे तेरे घमंड से बैर है,
ये बात आज की नहीं
न तुझको मुझपे मान था
मुझे भी तुझसे कोई सिवादत नहीं
जब है, ही नहीं कोई जुस्तजू
तो क्यूँ, न तू कहीं और मैं कहीं
सो अपना-अपना रास्ता
हँसी खुशी बदल लें
तू अपनी राहों पर चली
मैं अपने राह सो चलूँ
तू ख़्वाब है, तू दिल मे रह
हक़ीकत पर रोब न यूँ जमा
आ जाऊँ गर मैं, वजूद पर
फिर या तू नहीं या मैं नहीं
एक बात दिल की आख़िरी
अदब से मैं तुझे कहूँ
तू कल भी मुझपे सवार थी
तू अब भी मेरी ज़ुस्तज़ु
ये बात कुछ और है,
भली भली एक शक्ल थी
भली भली तेरी दोस्ती
अब तेरी याद रात दिन नहीं
हाँ मगर, हर कभी।