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aazam nayyar

Others

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aazam nayyar

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आरजू

आरजू

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करके भी जुस्तजू नहीं मिलती

वो मुझे रु ब रु नहीं मिलती 


रात दिन सोच में डूबा है दिल 

दिल की ही आरजू नहीं मिलती


नफ़रतों की है बातें होठों पर

प्यार की गुफ़्तगू नहीं मिलती


चैन आता नहीं मेरे मन को 

जो मुझे रोज़ तू नहीं मिलती


भर न पाते मिले ग़म अपनों से 

ज़ख्मों को गर रफू नहीं मिलती


ढूढ़ती है नज़र जिसे आज़म 

शक़्ल वो कू ब कू नहीं मिलती।


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