आँख मिचौली
आँख मिचौली
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मैं खेलूँ रात के संग आँख मिचौली
चाँद सितारों के साथ बनाकर टोली
जैसे रात लगती मेरी बिछड़ी सहेली
भरती है सुहाने सपनों से मेरी झोली
ज़िन्दगी मेरी बन जाती ऐसी सुरीली
ख़्वाबों में सजाती मैं यादों की डोली
दिल के दर पर रचाती मैं रंगों से रंगोली
कभी बिना नींद ऐसे ही रात गुजार देती
कभी लोरी गाकर गोदी में मुझे वो सुलाती
सुबह मेरी आँख पर पट्टी बांध चली जाती।
