आमंत्रण -पत्र
आमंत्रण -पत्र
पत्र लिखे और पाए अनेक, पर ना सकूँ पत्र वह कभी भूल।
आमंत्रण आचार्य रूप में, और कार्यस्थल होगा एक स्कूल।
परमपिता की सद्इच्छा से, इस वसुन्धरा पर हम आए थे।
विशिष्ट प्रयोजन परमेश्वर का, साधन बनकर हम हर्षाए थे।
परिजन-पुरजन और हर जन की, आकांक्षाएं हमने पूरी करनी थीं।
पूर्ण प्रयोजन करना प्रभु का, और हसरतें अपनी कई अधूरी थीं।
जीवन का तो लक्ष्य यही है ,बाँटें ख़ुशियाँ और बिखराएं फूल।
पत्र लिखे और पाए अनेक, पर ना सकूँ पत्र वह कभी..
गृह शिक्षण करते- करते जनपद में, मैंने कुछ वर्ष बिताए थे।
इस अवधि की स्मृतियाॅ॑ सुख कर,अनुभव अमूल्य बहु पाए थे।
अर्जित ज्ञान सहायक था जो, इस अवधि में मैंने पाया था।
साक्षात्कार और लिखित परीक्षा में, मैंने इसका लाभ उठाया था।
सम्पर्क मेरा सब परिजनों से है अटूट,आजीवन सकूँगा मैं न भूल।
पत्र लिखे और पाए अनेक, पर ना सकूँ पत्र वह कभी...
कार्यभार ग्रहण से लेकिन पहले, त्रि-दिवसीय प्रशिक्षण होगा।
कार्य कुशलता संग करें हम , शिविर विशिष्ट उद्देश्यपूर्ण होगा।
पूर्व संध्या प्रशिक्षणारम्भ पर ही, प्रशिक्षण स्थल पर जाना था।
पूर्ण आवासीय प्रशिक्षण होगा, वहीं पर दिन और रात बिताना था।
सामग्री सूचीनुसार लें पहुँचे समय से, बिना कोई भी भूल।
पत्र लिखे और पाए अनेक, पर ना सकूँ पत्र वह कभी...
पत्र-सामग्री आशीष के संग मैं तो, आकांक्षाएं पूरी करने पहुँच गया।
महादेव भोले की पावन नगरी थी यह, तन- मन मेरा हर्षित हो गया।
षट वर्ष रही यह कर्मभूमि, कार्यकाल मम् जीवन का अभिन्न अंग हुआ।
लघु भारत में अब रहता हूँ,पर सम्पर्क अनवरत अभी तक है बना हुआ।
मधुतर स्मृतियों को संजोए हुए, मोहक सुरभित सुगन्ध से युक्त फूल।
पत्र लिखे और पाए अनेक, पर ना सकूँ पत्र वह कभी....