आखिरी साल का पैग़ाम
आखिरी साल का पैग़ाम
जिस तरह सूरज की लालिमा ढलती हुई शाम को बया कर रही है ,
आने वाली चमचमाती किरण सबेरे के इंतज़ार में लुका छुपी खेल रही है ।
आज साल के आखिरी पड़ाव में जीवन को हर अनुभव से रूबरू करने का मौका मिला,
चाहे वो अच्छा रहा या फिर बुरा हुआ ,
हर समय,हर परेशानी से लड़ने का हौसला बना रहा।
बहुत से बदलाव बाक़ी हैं अभी ,
चलते ही जाना है,
थक भी गये तो रुकना नहीं है,
बिना आराम किए मंज़िल को पाना है
मुश्किल जितनी भी हो हर हाल में जीतना है।
कमियों से छुपो नहीं अपने डर को अपनाओ,
जीवन के संघर्ष से तुम दूसरों को सिखलाओ,
दिन भर की सोच को गुमनामी में मत ले जाओ
थोड़ा हाथ बढ़ाकर दूसरों की मदद करते जाओ,
अब नये साल का नये संकल्प से स्वागत करें,
जोश रखते हुए होश न खोएं
इसी उम्मीद से आगे बढ़ते जाएं ।
