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JAI GARG

Others

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JAI GARG

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आख़िर क्यो?

आख़िर क्यो?

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ना आँखों मे शर्म फिर सुनने का लिहाज़ कैसे कहेंगे हम

बिना सोचे लकीर के फ़क़ीर हम अच्छाइयाँ ही भुल गए

कोन सा अहसास कैसी इंसानियत दूर से होशियार बनो

बुराइयों से बचने के लिए हमने ख़ुद को बंदर बना लिया?


सोचा न था दिखावे का जनून एक दिन ले डुबोगा हमको;

मन का लालच और ज़ुबान से दरियादिल कभी न चलेगी!



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