आज सब है,मगर कोई नहीं।
आज सब है,मगर कोई नहीं।
आज ज़िन्दगी बे रंग नहीं,
वो काले रंग से भरा हुआ है।
हर एक कोने से दुख: के
बादल छा गए है।।
दूर दूर तक खुशी के
कोई किरण नजर नहीं आया।
सब कुछ काला है,
आखो में आसू जैसे
घर बसा चुके है।।
हर रिश्ता तुठ चुका है,
या फिर यूं कहूं
सब तोड़के चोड़ गए है।
आज ऐसे मोड़ पर मै कड़ी हूं
जहा पर मौत अनमोल लगा।।
वो ख़ुशी का खजाना लगा।
सब कुछ मिट गया है,या मिटाया गया।।
आज अपने आस्तित्व पे सवाल है,
जो सब जनता है,वो कमोश है।।
एक शब्द नहीं निकले मुसे ,
बस सवालों का कड़घेरा है।।
केहनेको बहुत कुछ है,
मगर सुनने को कोई नहीं।।
सबके सवाल है मगर जवाब
कोई सुनना नहीं चाहता।।
आज खमोशी इतनी प्यारी लगी
की शोर से दर लगने लगा है,
सब ते मगर कोई नहीं था,
जो सुन्हे हमारी खामोशी को।।
आज सब मिट गया है,
मगर यह भूल बैते
हम नहीं तो वो कैसे।।
पीतल कितना बी चमके
वो सोना नहीं होता।।
पर जब तक जानेगे
सोना बचेगा नहीं
आज ज़िन्दगी बेरंग नहीं।