आज ऋतुओं पर जवानी आ गयी है
आज ऋतुओं पर जवानी आ गयी है
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आज ऋतुओं पे जैसे
जवानी आ गयी है,
कभी सर्द मीठी सी
तो कभी धूप गुनगुनी छा रही है।
दिल को छुए जाये जैसे
एक लहर कोमल सी
आज बसंत जैसे,
अपनी दीवानगी मना रही है,
क्या है ये ऋतु बसंत
कोई बतलाये.. हमें,
क्यों ये तड़प प्यार की
दिल को बार बार हो रही है,
आज ऋतु औ पे जैसे जवानी आयी है
अनकही ग़ज़ल गूंज रही है,
जैसे दिल को साकी तो
कभी शराबी बना रही है।
मैखाने से रुख़सत हों कैसे हम,
यहाँ जैसे इश्क़ और मुहब्बत की
मिजबानी चल रही है।
आज ऋतुओं पे जवानी आ गयी है।
