आज की नारी
आज की नारी
आज नारी लोकव्यवहार व नेग रिवाज ही नहीं
अपने कंधों पर है भारी जिम्मेदारी उठा रही,
स्वयं संभलकर निष्ठा से सब को संभाल रही,
स्वयं त्याग की मूरत बनी सब पर खुशियां लुटा रही,
पढ़ लिखकर अपने बच्चों का भविष्य भी सँवार रही,
नए नए पकवान बनाकर घर परिवार महका रही,
दुर्गा मैया की तरह आठों हाथों को आजमा रही ,
मेहनत मशक्कत करके किस्मत अपनी सँवार रही ,
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री बन के देश का गौरव बढ़ा रही,
ऑटो, ट्रेन, एरोप्लेन चला कर अपना लोहा मनवा रही ,
खेलकूद में जीतकर देश में स्वर्ण पदक ला रही ,
इंजीनियर, वैज्ञानिक बनकर देश में नाम कमा रही,
बिजनेस वुमन, इंस्पेक्टर बनकर नये- नये करिश्मे दिखा रही ,
इस पर भी प्यार व अदब से सारे रिश्ते निभा रही ,
छठ मैया, करवा चौथ के व्रत करके गृहस्थ धर्म निभा रही ,
सारे फर्ज पूरे करती मन में कभी अहं लाती नहीं ,
तो दम्भी पुरुष इल्जाम देने की तुम्हारी आदत क्यों जाती नहीं ?
तुम्हारा भी तो वजन नो महीने अपनी कोख में यही नारी तो उठा रही।
