आज की बात ऐसी
आज की बात ऐसी
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आज की क्या बात कहें,
कुछ नए आघात कहें,
देश के हालात कहें,
नयी क्या बिसात कहें,
सही कहें कि जो भी,
आज-कल हो रहा,
है युवा सडकों पर,
जब संविधान रो रहा,
भावी क्या है?
अधर में लटका हुआ,
हृदय में प्रश्न ये,
एक बोझ सा अटका हुआ,
लोग ऐसे आज बैठे
ऊँची चट्टान पर,
कुछ भी नीचे फेंकते,
सबको मूढ़ जानकर,
सुनते न न्याय की,
ये नीति-नीति वाले,
न जन से इनका नाता,
न भारत समझने वाले,
ताकत बड़ी से ये बड़े,
इसी सोच से ये हितैषी,
सत्ता सबसे ऊपर,
कहाँ कोई मानवता कैसी,
जब लोग ये ऐठें रहें
हम बस जोर दे बैठे रहें,
सच रोज कुछ कहते रहें,
कम थोड़ा सहते रहें।
