आज
आज
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पुरानी कालिख को धुंधला करने की
चाह लिए मन,
कालिख, जो आलस की गाढ़ी बूंदों में
शिथिलता का चूरन मिलाकर,
निष्क्रियता के पात्र में
निराशा के चमचे ने
बड़े समय से मिलाई थी,
उदास तानों, उदास सपनों,
विफल अतीत के भँवर में,
बंद कोठरी के कोनों में,
कई अरसों से,
उदास कल्पनाएँ गहराई थीं
पर, आज कहीं शब्दों का निश्चय
कहीं बचा साहस पाकर,
आस का संबल लिये,
संघर्ष का साथ पाता है,
और नयीं प्रेरणाओं की ओर
टकटकी लगाए मन,
नया कदम, नया प्रयत्न,
नये विचारों संग,
नयी किरण की रौशनी में,
मेहनत की डोर खींच,
भावी साधने की राह में
फिर व्यस्त हुआ जाता है