आदमी
आदमी
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किस बात का गुमान है यारो
आदमी माटी का मकान है यारो।
बना ले ख्वाबों के सौ - सौ महल
अंतिम ठिकाना तो मसान है यारो।
सोने-चांदी नहीं,सुकून के दो-पल खरीद
ये दुनिया आनी- जानी दुकान है यारो।
चंद - साँसों का खेल है यह जीवन
आदमी दो -दिन का मेहमान है यारो।
इंसानियत ही पहचान है इंसानों की
यहाँ न कोई हिन्दू, न मुसलमान है यारो।