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टूटे हुए हृदय को धीर नहीं देता है दफ्तर । टूटे हुए हृदय को धीर नहीं देता है दफ्तर ।
प्रश्नों में ही हम उलझे रहते हैं और हल सामने होता है और जिस पथ पर जल ही जल दिखता वह पथ ही मरुथल होता... प्रश्नों में ही हम उलझे रहते हैं और हल सामने होता है और जिस पथ पर जल ही जल दिखता...
पर अम्मा को थोड़ा दुख है मन में अब भी कसक बची है, सोच रही माँ नए समय ने कैसी नयी बिसात रची है ? पर अम्मा को थोड़ा दुख है मन में अब भी कसक बची है, सोच रही माँ नए समय ने कैसी न...
लौट रही बैरंग घरों से, अब गौरैया वाली प्यासें, आँगन का चौरा सूखा है- उखड रही तुलसी की साँसे। परिवर्त... लौट रही बैरंग घरों से, अब गौरैया वाली प्यासें, आँगन का चौरा सूखा है- उखड रही तुल...
'इस तरह बिखरे कि बादल, खत सरीखे हो गए थे, आसमानी डाकिए की, पोटली से खो गए थ, खत कहाँ होंगे, अचानक डा... 'इस तरह बिखरे कि बादल, खत सरीखे हो गए थे, आसमानी डाकिए की, पोटली से खो गए थ, खत ...
'अच्छा है अपने को ही, अखबारों सा पढ़ना, खुद से सबक सीखकर खुद ही, अपने को गढ़ना, देख-देख मन के दर्पण मे... 'अच्छा है अपने को ही, अखबारों सा पढ़ना, खुद से सबक सीखकर खुद ही, अपने को गढ़ना, दे...
यह कविता ख़त की कहानी है । यह कविता ख़त की कहानी है ।
'बड़े जतन से ताना-बाना, बुनते वे घर का, सदा साधते रहे संतुलन, भीतर-बाहर का, वे इतने घर के हो जाते, ल... 'बड़े जतन से ताना-बाना, बुनते वे घर का, सदा साधते रहे संतुलन, भीतर-बाहर का, वे इ...
अगर सचमुच बंट गए तो हर महीने ख़त लिखूँगा, किस तरह से ढो रहा हूँ प्राण का पर्वत लिखूँगा । क्या ... अगर सचमुच बंट गए तो हर महीने ख़त लिखूँगा, किस तरह से ढो रहा हूँ प्राण का पर्व...
दिखती है जो मेरे तन पर एक अकेली सतह नही है, मेरे अंदर रहने वाला बिल्कुल मेरी तरह नही है । दिखती है जो मेरे तन पर एक अकेली सतह नही है, मेरे अंदर रहने वाला बिल्कुल मेरी ...