“एक कहानी गढ़नी होगी”
“एक कहानी गढ़नी होगी”
तुम्हें कहानी गढ़नी होगी
उस दहकती अग्नि में भी
ये जवानी कढ़नी होगी
एक कहानी गढ़नी होगी।
प्रचंड आंधी - तूफानों में
आस जगाने उस जीवन की
अकेले ही पतवार उठाए
कश्ती आगे बढ़नी होगी
एक कहानी गढ़नी होगी।
क्यों इंतज़ार फिर सूर्योदय का ?
खुद के हाथ हथेली पर ही
वो दहकते अंगारे लेकर
रात प्रज्ज्वल फिर करनी होगी
एक कहानी गढ़नी होगी
ये जीवनकाल समुद्र मंथन सा
विष के प्याले डगर - डगर
नव जीवन को, विकट काल में
वो विष सुराही,
तुम्हें उठानी होगी
एक कहानी गढ़नी होगी।
तप - तप तपती मरू धरा में
जीवन का संघर्ष सही
प्यास बुझाने उन शुष्क कंठ की
स्वयं की प्यास बढ़ानी होगी
एक कहानी गढ़नी होगी।
अदम्य साहस शमशीर उठाकर
माथे तिलक लहू लगाकर
लड़ने फिर रण भूमि में
स्वयं बलि फिर चढ़नी होगी
एक कहानी गढ़नी होगी।
शत्रु घेरे दसों दिशाएं
और ताप फिर घोर जलाए
एकाग्रित मन कर भेद लक्ष्य को
फिर गांडीव उठानी होगी
एक कहानी गढ़नी होगी।
शीश कटे चाहे कट जाए
देह मिटे तो मिट जाए
खुद की तुमको राख उठा कर
वो मूरत फिर गढ़नी होगी
एक कहानी गढ़नी होगी,
तुम्हें कहानी गढ़नी होगी।