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पोस्ट कार्ड

पोस्ट कार्ड

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मुझे जब मैगज़ीन की प्रति डाक से मिली तो मैं बहुत खुश हुआ। जल्दी से मैगज़ीन को पैकिंग से निकाला। पहले पन्ने पर जाकर वह लिस्ट देखने लगा जिसमें मैगज़ीन में छपी रचनाओं के साथ साथ पृष्ठ संख्या और रचनाकार का नाम था। ऊपर से नीचे की तरफ भागती मेरी उंगली मेरी रचना पर आकर ठहर गई। पृष्ठ संख्या देखी और फौरन वो पन्ना खोल लिया।


मेरे लेख का नाम था। उसके बाद मेरे एक चित्र के साथ मेरा नाम, संक्षिप्त परिचय व पता था। मैगज़ीन में स्वयं का नाम व चित्र देख कर बहुत गर्व हुआ।


घरवालों, आस पड़ोस, रिश्तेदारों सभी ने मेरा लेख पढ़ कर तारीफ की। मेरे पहले प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। अपने आसपास के लोगों से तारीफ मिलने के बाद मन में इच्छा जागी कि अन्य पाठकों की प्रतिक्रिया मिले तो अच्छा हो। पर उसकी कोई संभावना नज़र नहीं आ रही थी।


मैंने भी अपने लेखन को आगे बढ़ाने की कोशिश शुरू कर दी। इसी बीच सोशल मीडिया के विशाल संसार से मेरा परिचय आरंभ हुआ। जितना इसकी गलियों में घूमा अपने लेखन के लिए उतनी ही अधिक संभावनाएं दिखाई दी। मैंने भी उपलब्ध मंचों का भरपूर प्रयोग शुरू कर दिया। अब तो इधर रचना डाली। कुछ देर बाद ही उस पर प्रतिक्रिया आना शुरू। कुछ तारीफें, कुछ सुझाव, कुछ गलतियों की तरफ इशारे मुझे दिन पर दिन नया सिखाने लगे।


लेखन अच्छा चल रहा था। मैगज़ीन में छपे अपने पहले लेख को मैं भूल ही गया था। लेकिन एक दिन घर के लेटर बॉक्स से एक पोस्ट कार्ड निकला। मोबाइल फोन और इंटरनेट के ज़माने में पोस्ट कार्ड का आना किसी भुला दिए गए रिश्तेदार के आने जैसा था।


पर पोस्ट कार्ड देखा तो तबीयत खुश हो गई। हाथ की ऐसी सुंदर लिखाई कि छपे हुए अक्षर शरमा जाएं। पोस्ट कार्ड पढ़ा तो खुशी कई गुना बढ़ गई। एक पाठक ने बड़े प्यार से लिखा था वह पोस्ट कार्ड। बड़ी ही सुंदर भाषा में मैगज़ीन में छपे मेरे लेख की तारीफ थी।


सोशल मीडिया पर बहुत सी अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली थी। पर उस पोस्ट कार्ड पर लिखे शब्द मुझे विशेष होने का एहसास करा रहे थे।


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