ससुराल में पहला दिन
ससुराल में पहला दिन
जब अचानक ही घर पर पहली बार इनसे मिलना हुआ तभी हमको यह मन ही मन पसंद आने लगे। मगर उधर से क्या है वह पता नहीं था मन बहुत बेचैन था। दीदी को बोला चलो मार्केट चलते हैं। मुझे लग रहा था आज लगता है कि शायद आग दोनों तरफ लगी थी हम मार्केट में गए तो यह भी दोस्तों के साथ में मार्केट में घूम रहे थे। सामने देखा चल के पास आए। फिर हम लोगों ने होटल में मिले काफी बातचीत हुई जाते जाते यह भी इकरार कर गए और आंखों आंखों से हमको बता दिया कि हमको भी तुम पसंद हो बड़ा प्यारा सा समा था ।मंजूरी की मुहर लग गई और 15 दिन के अंदर सगाई शादी हो गई। और हम पहुंच गए मेवाड़ मारवाड़ की छोकरी मेवाड़ के घराने की बहू बन गई।
आगे की एक शादीशुदा की दास्तां क्या बयान करें। एक अच्छी हंसती खिलखिलाती लड़की अपने मां बाप की प्यारी सबकी दुलारी मारवाड़ की बेटी पहुंच गई शादी करके मेवाड़ में बहु बनके।
पहला दिन सबने पलकों पर रखा बहुत प्यार किया ।अब नंबर आया खाना खाने का खाने कि थाली देख कर रोना आया। जिंदगी में कभी उड़द की दाल और बिना रंग वाली सब्जियां खाई नहीं थी ।क्योंकि मारवाड़ में तो बहुत मसाला और बहुत ही तेल वाला और मूंग की दाल बनती है। उड़द की दाल तो कभी चखी भी नहीं ।
सब लोग इतना चटकारे ले लेकर खा रहे थे। हमारे निवाला ही गले नहीं उतर रहा था ।क्या करें ,क्या ना करें ,आखिर में धीरे-धीरे करके जबरदस्ती खाना खाया गया।
बहुत विचारा क्या किया जाए ।मगर नई बहु करही क्या सकती है ।जिंदगी में कभी लहसुन नहीं खाया था। वहां कोई सब्जी बिना लहसुन की नहीं थी। तब जिठानी बोले खाना खाओ। मैंने उनसे बोला भूख नहीं है।
पहला दिन तो किसी को यह भी नहीं कह सकती कि मुझे खाना अच्छा नहीं लग रहा है ।
फिर मैंने मेरे पति को बोला कि मैं तो यह सब नहीं खा सकती हूं ।वे बोले अभी तुम दही से खाना खा लो। बाद में जो करना हो वह करना ।मगर अभी मेहमान है तो अभी कुछ मत कहो कि मैं यह नहीं खा सकती हूं। नहीं तो बात बनेगी। जैसे तैसे करके दो-तीन दिन निकले।
फिर रसोई करने का वारा आया। मैंने तो कभी अपनी जिंदगी में गैस और स्टॉव और सिगड़ी के सिवाय काम नहीं करा मगर वहां रसोई में चूल्हा देखकर होश उड़ गए। अब क्या करूं कहीं स्टोव भी नजर नहीं आ रहा था। चूल्हे पर रोटी बनाने थी। मेरी तो एक दो नहीं सभी रोटियां जल गई।
मेरी जेठानी मेरी मदद में आए ।और उन्होंने रोटियां बनाई ।ऐसे ही दो-चार दिन और निकल गए ।वह चूल्हे के पास काम करती और मैं उनकी मदद करती। धीरे-धीरे मैंने चूल्हे पर काम करना सीख लिया ।
और वहां के खाने को भी खाना सीख लिया। मैंने मन में कहा यही रहना है तो अपनी दिनचर्या भी बनानी पड़ेगी। और सब पसंद भी करना पड़ेगा ।तो मैंने मेरी दिनचर्या में दिन का सोना और दिन में 1 घंटा अपनी बुक पढ़ना कुछ भी शामिल करा। इस सब मैं किसी के बोलने की परवाह नहीं करी। और इसी तरह मेरी जिंदगी चल निकली। कुछ मेरे उसूलों पर कुछ सैक्रिफाइस इस पर और शांति से चल रही है। अपने परिवार वालों का साथ तो है ही ।पर शादीशुदा लड़कियों के साथ में शुरुआत में तो काफी कुछ बदलाव होते हैं वह एक दास्तान ही बन जाते हैं। आज भी कभी-कभी है पहला दिन याद आता है तो बहुत हंसी आती है आज तो उड़द की दाल अच्छी लगने लगी है लहसुन भी बहुत अच्छा लगता है मगर उस दिन तो क्या हाल है मेरा दिल ही जानता है।
