डॉक्टर डूलिटल - 2.13
डॉक्टर डूलिटल - 2.13
पुराने दोस्त
अचानक पानी की सतह पर शार्क्स दिखाई दीं – भीमकाय, डरावनी मछलियाँ अपने तीक्ष्ण दाँतों और चौड़े खुले जबड़ों के साथ।
उन्होंने समुद्री डाकुओं का पीछा किया और जल्दी ही सबको निगल लिया।
“उनका यही हश्र होना था!” डॉक्टर ने कहा। “उन्होंने निर्दोष लोगों को लूटा, उन्हें सताया और मार डाला है। उन्हें अपने बुरे कामों का फल भुगतना पड़ गया।”
डॉक्टर तूफ़ानी समुन्दर में बड़ी देर तक सफ़र करता रहा। और अचानक उसने सुना कि कोई चिल्ला रहा है:
“बोएन! बोएन! बरावेन! बावेन!”
जानवरों की भाषा में इसका मतलब है:
“डॉक्टर, डॉक्टर, अपना जहाज़ रोको!”
डॉक्टर ने पाल गिरा दिए। जहाज़ रुक गया, और सबने तोते कारूदो को देखा। वो तेज़ी से समुन्दर के ऊपर उड़ रहा था।
“कारूदो, तुम?” डॉक्टर चीखा, “तुझे देखकर कितनी खुशी हो रही है! आ जा, यहाँ आ जा!”
कारूदो जहाज़ के निकट आया, ऊँचे मस्तूल पर बैठ गया और चिल्लाया:
“ज़रा देखो तो, मेरे पीछे कौन तैर कर आ रहा है! वहाँ, ठीक क्षितिज के पास, पश्चिम में!”
डॉक्टर ने समुन्दर की ओर नज़र दौड़ाई और देखा कि दूर, बहुत दूर, समुन्दर में मगरमच्छ तैर रहा है। और मगरमच्छ की पीठ पर बन्दरिया चीची बैठी है। वह खजूर के पेड़ का पत्ता हिला रही है और मुस्कुरा रही है।
डॉक्टर ने फ़ौरन अपना जहाज़ मगरमच्छ और चीची की ओर मोड़ा और उनके लिए जहाज़ से रस्सी फेंकी।
वे रस्सी पे चढ़ते हुए डेक पर पहुँचे, डॉक्टर की ओर लपके और उसके होठों को, गालों को, दाढ़ी को, आँखों को चूमने लगे।
“तुम समुन्दर के बीच में कैसे आए?” डॉक्टर ने उनसे पूछा।
अपने पुराने दोस्तों को देखकर वो बहुत ख़ुश था।
“आह, डॉक्टर!” मगरमच्छ ने कहा। “तुम्हारे बिना हम अपनी अफ्रीका में इत्ते ‘बोर’ हो गए! कीकी के बिना, अव्वा के बिना, बूम्बा के बिना, प्यारे ख्रू-ख्रू के बिना हमारा दिल ही नहीं लगता था! वापस तुम्हारे घर जाने को बहुत दिल चाहता था, जहाँ अलमारी में गिलहरियाँ रहती हैं, दीवान पर – काँटों वाली साही, और दराज़ों में – ख़रगोश और उनके पिल्ले। हमने फ़ैसला कर लिया कि अफ्रीका छोड़ देंगे, सारे समुन्दरों को पार करके ज़िन्दगी भर तुम्हारे साथ रहेंगे।”
“शौक से!” डॉक्टर ने कहा। “मैं बेहद ख़ुश हूँ।”
“हुर्रे!” बूम्बा चिल्लाया।
”हुर्रे!” सारे जानवर चिल्लाए।
और फिर वे एक दूसरे का हाथ पकड़कर मस्तूल के चारों ओर नाचने लगे।
“शीता, रीता, तीता, द्रीता!
शिवान्दादा, शिवान्दा!
प्यारे अपने डॉक्टर डूलिटल को,
छोड़ेंगे हम कभी ना!”
सिर्फ बन्दरिया चीची एक कोने में बैठकर दुख से आहें भर रही थी।
“तुझे क्या हुआ है?” त्यानितोल्काय ने पूछा।
“आह, मुझे दुष्ट बार्बरा की याद आ गई! वो फिर से हमारा अपमान करेगी और हमें सताएगी!”
“घबरा मत,” त्यानितोल्काय चिल्लाया। “बार्बरा हमारे घर में नहीं है! मैंने उसे समुन्दर में फेंक दिया था, और अब वह एक निर्जन टापू पे रहती है।”
“निर्जन टापू पे?”
“हाँ!”
चीची, और मगरमच्छ, और कारूदो - सब बड़े ख़ुश हो गए : “बार्बरा निर्जन टापू पे रहती है!”
“त्यानितोल्काय – ज़िन्दाबाद!” वे चिल्लाए और फिर से डांस करने लगे:
“शिवान्दारी, शिवान्दारी!
फुन्दुक्लेय और दुन्दुक्लेय!
अच्छा है जो वहाँ नहीं है बार्बरा बुरी-बुरी!
बिन बार्बरा के बड़ी ख़ुशी!’
त्यानितोल्काय अपने दोनों सिरों से उनका अभिवादन कर रहा था, और उसके दोनों मुँह मुस्कुरा रहे थे।
जहाज़ अपनी पूरी गति से जा रहा था, और शाम होते होते बत्तख कीका ने, जो ऊँचे मस्तूल पर चढ़ गई थी, अपने शहर के किनारे को देखा।
“पहुँच गए!” वह चिल्लाई। “बस, एक घण्टा और, फिर हम होंगे घर में!। वो रहा हमारा शहर – पिन्देमोन्ते। मगर, ये क्या? देखिए, देखिए! आग! पूरा शहर आग से घिर गया है! कहीं हमारा घर तो नहीं जल रहा है? आह, कितना भयानक! कितना बड़ा दुर्भाग्य!”
पिन्देमोन्ते शहर के ऊपर खूब उजाला था।
“जितनी जल्दी हो सके, किनारे पर पहुँचो!” डॉक्टर ने आज्ञा दी। “हमें इन लपटों को बुझाना होगा! बाल्टियाँ लेंगे और उस पर पानी डालेंगे!”
मगर तभी कारूदो उड़कर मस्तूल पर गया। उसने दूरबीन से देखा और इतनी ज़ोर से ठहाका मार कर हँसा कि सब अचरज से उसकी ओर देखने लगे।
“आपको ये लपटें बुझाने की कोई ज़रूरत नहीं है,” उसने कहा और दुबारा ठहाके लगाने लगा, “क्योंकि ये कोई आग-वाग नहीं लगी है।”
“तो फिर वो क्या है?” डॉक्टर डूलिटल ने पूछा।
“रो-श-नी!” कारूदो ने जवाब दिया।
“वो क्या होता है?” ख्रू-ख्रू ने पूछा। “मैंने तो ये अजीब-सा लब्ज़ कभी नहीं सुना।”
“अभी पता चल जाएगा,” तोते ने कहा। “दस मिनट सब्र कर ले।”
दस मिनट बाद, जब जहाज़ किनारे कि नज़दीक पहुँचा, तो सभी फ़ौरन समझ गए कि रोशनी क्या होती है। सभी घरों पर और मीनारों पर, किनारे के पास वाली चट्टानों पर, पेड़ों के शिखरों पर – हर जगह रंगबिरंगे फ़ानूस जल रहे थे : लाल, हरे, पीले, और किनारे पर अलाव जल रहे थे,जिनकी चमकदार लपटें आसमान को छू रही थीं।
औरतें, आदमी और बच्चे त्यौहारों वाली, ख़ूबसूरत पोशाकों में इन आलावों के चारों ओर थिरक रहे थे और खुशी के गीत गा रहे थे।
जैसे ही उन्होंने देखा कि जहाज़ किनारे पर लग गया है, जिसमें डॉक्टर डूलिटल अपनी यात्रा से लौट आया है, वे तालियाँ बजाने लगे, हँसने लगे, और सब के सब एक सुर में उसका स्वागत करने लगे:
“स्वागत है, डॉक्टर डूलिटल !” वे चिल्लाए। “डॉक्टर डूलिटल की जय हो!”
डॉक्टर भौंचक्का रह गया। उसे ऐसे स्वागत की उम्मीद नहीं थी। उसने सोचा था कि बस तान्या और वान्या ही उससे मिलने आएँगे, और, हो सकता है, बूढ़ा नाविक रॉबिन्सन भी आ जाए, मगर यहाँ तो पूरा शहर उसका स्वागत कर रहा है फ़ानूसों से, संगीत से, ख़ुशनुमा गानों से! बात क्या है? उसका इतना सम्मान आख़िर किसलिए हो रहा है? उसकी वापसी का इतना जश्न क्यों मनाया जा रहा है?”
वो त्यानितोल्काय पर बैठकर अपने घर जाना चाहता था, मगर भीड़ ने उसे पकड़ लिया और हाथों पर उठाकर – सीधे समुन्दर के किनारे वाले चौक पर ले आए।
सभी खिड़कियों से लोग बाहर झाँक रहे थे और डॉक्टर पर फूलों की वर्षा कर रहे थे।
डॉक्टर मुस्कुरा सहा था, झुक कर अभिवादन कर रहा था – और अचानक उसने देखा, कि भीड़ को चीरते हुए तान्या और वान्या उसके पास आ रहे हैं।
जब वे उसके क़रीब पहुँचे, तो उसने उन्हें बाँहों में भर लिया, उनका चुम्बन लिया और पूछा:
“तुम लोगों को कैसे पता चला, कि मैंने बर्मालेय को हरा दिया है?”
“हमें इस बारे में पेन्ता से पता चला,” तान्या और वान्या ने जवाब दिया। “पेन्ता हमारे शहर में आया और उसने हमें बताया कि तुमने उसे ख़ौफ़नाक कैद से छुड़ाया है, और उसके पिता को डाकुओं से बचाया है।”
अब कहीं जाकर डॉक्टर ने देखा कि दूर, टीले पर पेन्ता खड़ा है और अपने पिता का रूमाल हिलाकर उसका स्वागत कर रहा है।
“नमस्ते, पेन्ता!” डॉक्टर ने चिल्लाकर उससे कहा।
मगर तभी बूढ़ा नाविक रॉबिन्सन मुस्कुराते हुए उसके पास आया, उसने गर्मजोशी से डॉक्टर से हाथ मिलाया और इतनी ऊँची आवाज़ में बोलना शुरू किया कि चौक पर उपस्थित सब लोग उसकी बात सुन सकें:
“हम सबके प्यारे, दुलारे डॉक्टर डूलिटल ! हम तुम्हारे इतने शुक्रगुज़ार हैं कि तुमने पूरे समुन्दर से घिनौने समुद्री-डाकुओं का सफ़ाया कर दिया है, जो हमारे जहाज़ छीन लिया करते थे। आज तक हम समुन्दर में दूर तक जाने की हिम्मत नहीं कर सकते थे, क्योंकि समुद्री-डाकू हमें धमकाते थे। मगर अब, समुन्दर साफ़ हो गया है, और हमारे जहाज़ों को कोई ख़तरा नहीं है। हमें गर्व है कि ऐसा बहादुर ‘हीरो’ हमारे शहर में रहता है। हमने तुम्हारे लिए एक बढ़िया जहाज़ बनाया है, और इजाज़त दो कि हम तुम्हें तोहफ़े में वो जहाज़ दें।”
“हमारे प्यारे, हमारे निडर डॉक्टर डूलिटल की जय हो!” भीड़ एक सुर में चिल्लाई। “शुक्रिया, शुक्रिया, तेरा शुक्रिया!”
डॉक्टर ने झुककर भीड़ का अभिवादन किया और कहा:
“इस प्यारे स्वागत के लिए शुक्रगुज़ार हूँ! मैं ख़ुशनसीब हूँ कि आप लोग मुझे प्यार करते हैं। मगर, मैं कभी भी, कभी भी समुद्री डाकुओं का ख़ात्मा नहीं कर सकता था, अगर मेरे वफ़ादार दोस्तों ने, मेरे जानवरों ने मेरी मदद न की होती। ये यहाँ हैं, मेरे साथ, और मैं तहे दिल से उनका स्वागत करना चाहता हूँ, उनकी निःस्वार्थ दोस्ती के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ!”
“हुर्रे!” भीड़ चिल्लाई। “डॉक्टर डूलिटल के निडर जानवरों की जय हो!”
इस समारोह के बाद डॉक्टर त्यानितोल्काय पे सवार होकर अपने जानवरों के साथ अपने घर के दरवाज़े की ओर चला।
उसके आने से ख़रगोश, गिलहरियाँ, साही और चमगादड़ - सभी ख़ुश हुए!
मगर अभी वह उनसे मिल भी नहीं पाया था कि आसमान में शोर सुनाई दिया। डॉक्टर ड्योढ़ी में भागा और देखा कि बहुत सारे सारस उड़कर आ रहे हैं। वे उसके घर तक पहुँचे और, एक भी शब्द बोले बिना, बेहतरीन फलों की बड़ी टोकरी उसे थमा दी। टोकरी में थे: खजूर, सेब, नाशपाती, केले, आडू, अंगूर, संतरे!
“डॉक्टर, ये तुम्हारे लिए है, बन्दरों के देश से!”
डॉक्टर ने उन्हें धन्यवाद दिया, और वे फ़ौरन वापस उड़ गए।
और, एक घण्टॆ बाद डॉक्टर के यहाँ शानदार दावत हुई। रंगबिरंगे फ़ानूसों की रोशनी में लम्बी-लम्बी बेंचों पे, लम्बी मेज़ पे, डॉक्टर डूलिटल के सारे दोस्त बैठ गए: तान्या, और वान्या, और पेन्ता, और बूढ़ा नाविक रॉबिन्सन, और अबाबील, और ख्रू-ख्रू, और चीची, और कीका, और कारूदो, और बूम्बा, और त्यानितोल्काय, और अव्वा, और गिलहरियाँ, और साही, और चमगादड़।
डॉक्टर ने उन्हें शहद, फलों के टुकड़े, हनी-केक्स दिए, और वे सबसे स्वादिष्ट फल भी दिए जो ‘बन्दरों के देश’ से भेजे गए थे।
दावत बड़ी शानदार रही। सब लोग मज़ाक कर रहे थे, हँस रहे थे और गा रहे थे, और फिर सब उठकर वहीं ब**
**ाग में, रंग-बिरंगे फानूसों की रोशनी में डान्स करने लगे।