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Meera Parihar

Children Stories Classics

4  

Meera Parihar

Children Stories Classics

बालक गणेश

बालक गणेश

16 mins
324

स्थान- देवलोक

माँ पार्वती, शिवजी, बालक गणेश, प्रतिहारियाँ, वृद्धा, हाथी, चींटी, गाय


वातावरण-स्वर्गलोक-गणेश चतुर्थी का अवसर है, और पृथ्वी लोक की आवाजें वहाँ सुनाई पड़ रहीं हैं, जिन्हें सुनकर बालक गणेश अपनी माँ पार्वती के पास दौड़ते हुए आए हैं।

बालक गणेश खेलते हुए आते हैं और अपनी माता को आवाज लगाते हैं।

माता श्री ! माता श्री ! सुनिए  !बालक गणेश ने अपनी माँ पार्वती जी का आंचल पकड़ कर कहा

बालक गणेश ने अपने मुंह पर पट्टी लपेट ली है।"देखो न माता श्री ! मैं कैसा लग रहा हूँ ?मुझे कुछ कहना है, अगर आप सुनो तो मैं कुछ कहूँ"

"क्या सुनूं ? गणेश ! ! मेरे लाल ! !मुझे मालूम हैआज तुम्हारा जन्मदिन है और तुमको मोदक बहुत प्रिय हैं और मैं वही बनवाने का प्रबन्ध कर रही हूँ।"

मोदक ! मेरा प्रिय मोदक !

"वह देखो अपने आँगन में कितनी प्रतिहारी उपस्थित हुई हैं, वे सभी आज मोदक बनाएंगीं मेरे पुत्र के लिए।"

"बहुत सा बनेगा माता श्री ?"

"हाँ मेरे पुत्र !"

माँ पार्वती ने बालक गणेश के गाल पर स्नेह से हाथ फिराते हुए कहा।देखो !" आज कोई शरारत नहीं करना जिससे तुम्हारे पिताजी को अनावश्यक क्रोध आए,,समझे !"

अब जाकर नये वस्त्र धारण कर लो,,और अपने प्रिय मूषक को भी अच्छी तरह तैयार कर लेना, वस्त्रालय में तुम दोनों के ही नये वस्त्र रखे हुए हैं "

"पर माते रानी उसकी क्या आवश्यकता है ? मैंने जो पहने हैं, वह भी तो नवीन ही हैं। मैं एक अन्य बात कहना चाह रहा था आपसे "

 "क्या कहना चाहते हो पुत्र गणेश ? कहो"

" मैं बताना चाह रहा था कि पृथ्वी लोक देखा क्या आपने ? "

" हाँ देखा है न,बहुत रौनक है वहाँ पर, सभी तुम्हारे जन्म का उत्सव मना रहे हैं और तुम्हारी स्तुति कर रहे हैं।"

"मंगल मूर्ति मोरया,गणपति बप्पा मोरया,मो रया,मोरया। "

"आज तुम्हारा जन्मदिन है पुत्र ! "

"पर मेरा जन्म दिन पृथ्वी पर क्यों मना रहे हैं लोग ? "

"क्योंकि लोग तुम्हें विघ्नहर्ता मानते हैं और सभी कार्यों में प्रथम पूजनीय हो गये हो अपने बुद्धिचातुर्य के कारण वहाँ पर, तुम्हें तुम्हारे पिता श्री से ऐसा ही वरदान मिला हुआ है।"

"एक बात और देखी क्या आपने ?"गणेश ने प्रश्न किया।

"क्या पुत्र ? "माँ पार्वती बालक गणेश को अपनी गोद में बिठा कर उसके गालों पर थपकी देती हैं।

(वहाँ आसमान ही बहुत बड़ा स्क्रीन है और पृथ्वी पर होने वाले सभी कार्य होते हुए दिखायी दे रहे हैं।)

"स्क्रीन पर देखिए, माता श्री ! वहाँ सभी ने अपने मुखों पर पट्टी बाँध रखी है। रंग-बिरंगे पंडाल सजे हैं और मंगलमूर्ति मोरया, गणपति बप्पा मोरया की आवाजें आ रहीं हैं। मेरा मन भी वहीं जाने का कर रहा है।"

"तुम्हें पता नहीं है क्या ? गणेश ! कि पृथ्वी पर कोरोनाबायरस का संक्रमण फैला 

हुआ है, इसीलिए सभी ने मुखपट्टियां बाँधी हैं। लगता है तुम समाचार नहीं पढ़ते हो। यह तो अच्छी बात नहीं है पुत्र ! !

"माते ! !मुझे समाचार सुनना, पढ़ना और देखना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है। मुझे तो कार्टून, कहानियाँ और कविता ही पसंद हैं।"

" तुम भी किसी कार्टून से कम नहीं हो गणेश ! चलो आदित्य श्लोक सुनाओ मुझे। "

"ऊँनमो सूर्याय,भास्कराय दिनकराय, मार्तन्डाय, विवस्वते।"

"ये हुई न बात, मेरा पुत्र सबसे निराला है।"

"ये निराला क्या होता है ? माताश्री !"

"भोला-भाला,बक्रतुंड वाला"

"देखो पुत्र ! समस्त ब्रह्माण्ड से जुड़े रहने के लिए समाचार जरूर पढ़ने चाहिए। वरना कहाँ क्या हो रहा है, कैसे मालूम होगा,, मेरे प्रिय बच्चे ! "

" मैंने कहा न कि ये समाचार मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते।"

"मैं आज तुम्हारे पिताजी से शिकायत करूँगी। आने दो नारद जी को,,उन्हें एक भी मोदक नहीं दूंगी। मेरे लाला को खबरें क्यों नहीं बताते वे।"

 "नहीं माता श्री ऐसा मत कीजिएगा, आप ही बताइए कि कोरोना बीमारी से क्या होता है ? "

"अरे पुत्र ! यह बड़ी छूत की बीमारी है एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुँच जाती है और उसके फेफड़ों को जकड़ लेती है और पीड़ित व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होती है। व्यक्ति समय पर इलाज न मिल पाने के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। यह पृथ्वी लोक के सभी देशों में फैल चुकी है। इसकी शुरुआत चीन के बुहान शहर से हुई थी।"

देखा था न ? तभी तो सभी जगह अस्पताल बीमार लोगों से भरे हुए थे।

"हाँ माते ! मैं देख पा रहा हूँ, अस्पतालों के बाहर रुदन और अजीब पोशाक पहने हुए लोग।"

"तो क्या मुखपट्टी बाँधने से यह रोग नहीं होता है ?"

"हाँ पुत्र ! इस बीमारी से ग्रसित बीमारी के वायरस संक्रमित व्यक्ति के मुँह और नाक के तरल पदार्थ के द्वारा दूसरे व्यक्ति के मुख,नासिका मार्ग से होते हुए फेफड़ों में पहुँच जाता है और लगभग चौदह दिन के अंदर पूरे फेफड़ों में फैल जाता है जिससे पीड़ित सांस लेने में कठिनाई महसूस करता है और शनैः शनैः मृत्यु के मुख में भी समा सकता है।"

"अच्छा ! तो इसलिए सभी ने मुँह, नाक ढंक लिए है ?माताजी ! मेरी प्रबल इच्छा है कि मैं एक चक्कर पृथ्वी लोक पर लगा कर आऊँ।"

"ऐसा क्यों चाहते हो पुत्र ! ? "

"मुझे वहाँ की रौनक देखनी है,माताश्री !"

"पर आज ही क्यों ?आज तुम्हारा जन्मदिन है। संध्या समय सभी देवतागण अपने घर पर आमंत्रित हैं। क्या तुम उनसे नहीं मिलोगे ?"

"माता ! मैं पृथ्वीवासी बच्चों से मिलना चाहता हूँ और भजन पूजन करने वालों की परीक्षा भी लेना चाहता हूँ,, जाकर देखूं तो सही कि क्या वह मुझे वास्तव में चाहते हैं या सब दिखावा है।"

"यह सब जानने की क्या जरूरत है ? सभी तुमको बहुत पसंद करते हैं और सभी शुभ कार्य तुम्हारा नाम लेकर ही शुरू करते हैं। इस समय तो तुम्हें नहीं जाना चाहिए।वहाँ कोरोना ने कहर ढाया है, डर लगता है कि कहीं कुछ हो न जाए।"मेरे प्रिय पुत्र !"

"मेरी अच्छी, प्रिय, गोरी, सुंदर सुशील माता श्री ! कृपया मान जाइए ! मैं शाम तक वापस आ जाऊँगा, मूषक को भी साथ लेकर जाऊँगा माँ ! मुझे आज खीर खाने की इच्छा है और यह मैं पृथ्वी लोक के घरों में ही खाकर आऊँगा।"

"पुत्र ! खीर तो यहाँ भी बन रही है। सभी तुम्हारी पसंद के व्यंजन ही बन रहे हैं।"

(दालान में भोजन की तैयारियांँ चल रही है। सेवक, सेविकाओं का आवागमन चल रहा है)

"माता जी ! मुझे तो आज धरती के बालकों के साथ ही खेलना है।"

"ठीक है पुत्र ! तुम सदा से ही हठी बालक रहे हो, जो ठान लेते हो वही करते हो। नहीं मान रहे हो तो जाने का प्रबंध करती हूँ अभी"।  

" प्रतिहारी !ओ प्रतिहारी हमारे पास आइए !"

"जी देवी ! !प्रणाम ! !"

'बालक गणेश अपनी माँ के आराम कक्ष में पहुँच कर उनसे लिपट गये हैं और उन्हें तरह तरह की क्रियाओं से प्रसन्न करने का अभिनय करते हैं'। यहीं से आँगन में प्रतिहारिने विविध कार्य करती हुईं दिखायी दे रही हैं,,,

" क्या बात है बालक गणेश ? क्या चाहते हो ?"

" हे माता ! आप कितनी अच्छी हैं।आपको बारम्बार प्रणाम ! !"

"एक हल्की प्रीतिसिक्त मुस्कराहट के साथ माता पार्वती ने बालक गणेश के मस्तक को सूंघते हुए कहा, यशस्वी भव पुत्र !"

" अरी प्रतिहारी ! !सुनो !आज बालक गणेश पृथ्वी भ्रमण के लिए जाना चाहते हैं। उनके सुंदर वस्त्रों से मिलान करके कुछ मुख पट्टियाँ तैयार करनी होंगीं शीघ्र ही। राधा,रमणी,शशी की भी मदद ले लेना।"

"जी देवी ! ! प्रणाम कहकर "प्रतिहारी वहाँ से चली जाती है।

बालक गणेश ने अपने मुख और नासिका पर पृथ्वी वासियों की तरह जब मास्क पहना तो उपस्थित सभी जन उनकी बलैया लेने लगीं। माँ पार्वती ने उनकी ऐसी छवि को देखकर बहुत से गहने, मोती, माणिक न्योछाबर कर प्रतिहारियों में वितरित कर दिए।

बालक गणेश उछलते कूदते हुए अपने मूषक के साथ चल दिए।

माँ पार्वती उनके पीछे-पीछे दरवाजे तक आती हैं और वहीं खड़ी हुईं दूर तक गणेश को जाते हुए देखती रहती हैं और शिव का ध्यान करती हैं।

शिव का ध्यान करते ही वे वहीं उपस्थित हो जाते हैं।

माँ पार्वती बालक गणेश के पृथ्वी गमन के वारे में विस्तार से उन्हें बताती हैं और पृथ्वीलोक को देवलोक में ही उपस्थित करने का आग्रह करती हैं।

माता पार्वती की बातें सुनकर शिव परेशान हो उठते हैं और कहते हैं कि ऐसा करने से कितना क्षय होता है ? कभी सोचा है आपने ?

बालक है अभी गणेश, मुझे भय लगता है इतनी दूर भेजते हुए। कृपया निराश मत कीजिए।

शिव अपनी दैवीय शक्ति से पृथ्वी लोक को देवलोक में ले आते हैं।

‌बालक गणेश अपने पिता से आज्ञा लेने के लिए उनकी परिक्रमा करने लगते हैं।

(बालक गणेश जैसे- जैसे शिव की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका आकार भी बड़ा होता जा रहा है,अब वह चौदह वर्ष के किशोर लग रहे हैं और उनका मूषक भी उनके अनुरूप बड़ा आकार ले लेता है।)

(पिता के इर्द-गिर्द पृथ्वी का घेरा और उसमें वनस्पति,पशु,पक्षी,नदी, सागर,पर्वत के चित्र)

उन्होंने पहले जैसा किया था, इस बार भी अपने पिता श्री शिव जी की परिक्रमा की तो सम्पूर्ण पृथ्वीलोक वहीं उपस्थित हो गया, जिसमें हरी भरी धरती,नदियाँ, समुद्र, पर्वत, जंगल सभी कुछ दिखाई दे रहा था। सावधानीपूर्वक वह पहले जंगल में उतर गये। जहाँ सबसे पहले वे अपने मुख समान विशालकाय प्राणी गजराज से मिले और अपनी मंशा बताते हुए वार्ता शुरू की।

(जंगल जिसमें हाथी है और हिरन,खरगोश आदि जानवर घूम रहे हैं।) अपने मूषक के साथ गजराज के पास जाते हैं और कहते हैं

"हे गजराज ! विशाल शरीर के स्वामी, पृथ्वी के सबसे बड़े जीवधारी ! "

"क्या तुम मेरी इच्छा पूरी कर सकते हो ?"

"इच्छा बताओ बालक ! "न तुम मनुष्य हो और न ही गज तुम कौन लोक के प्राणी हो ?

हे गजराज मैं देवलोक से आया हूँ। मेरे इस स्वरूप की एक कहानी है,जिसे मैं बाद में बताऊंगा, जब तुम मेरे लोक में आओगे। इस समय तो

"मेरी खीर खाने की बहुत इच्छा है,क्या तुम मुझे खीर खाने के लिए दे सकते हो ?"

हाथी मंद मंद मुस्करायाऔर,

बोला,,,"हे मनोहर, सुंदर बालक ! ! यह जंगल है, यहाँ रसोई में भोजन तैयार नहीं होता है, जंगल में जो भी उपलब्ध होता है, वही खाकर गुजारा करना पड़ता है। मैं तुम को एक गन्ना देता हूँ, इसे छील कर खाओ तो जराबहुत ही रसीला और मीठा है। कुछ केले खा सकते हो, यह भी बहुत मीठे,ताजी,और पौष्टिकता से भरपूर हैं, तुम इनसे अपनी भूख मिटा सकते हो।"

"ठीक है, यही दे दो,मेरे पास तुम्हें देने के लिए दुआएं हैं। तुम इस संसार के बुद्धिमान जीव कहे जाओगे। हे गजराज !"गणेश ने हाथी को अपने छोटे-छोटे हाथों से सहलाया तो देखते ही देखते वह सफेद रंग में बदल गया।सफेद हाथी पूरे जंगल में बादलों में चंद्रमा के समान दिखाई देने लगा। वह जंगल में सबका प्रिय बन गया।

(जंगल और पशु पक्षियों के दृश्य* गन्ने और केले अपने हाथों में ले जाते हुए बालक गणेश)

इस तरह बालक गणेश ने केले खाए और गन्ने का रस पिया। अपने साथी मूषक को भी खिला पिला कर तृप्त किया। एक हाथ में कुछ गन्ने और दूसरे हाथ में केले लेकर वे दोनों आगे बढ़े तो क्या देखते हैं कि कुछ चरवाहे बालक अपनी गाय चरा रहे थे और गाय के थनों से दूध निकाल कर पी रहे थे।

  बालक गणेश ने रुक कर उन गायों से पूछा,,"हे गाय मातेश्वरी ! मेरी आज खीर खाने की प्रबल इच्छा हो रही है।क्या तुम मुझे कुछ दूध देकर उपकृत कर सकती हो ?"

गाय बोली,, "मेरा तो धर्म है, समस्त प्राणियों के लिए दूध उपलब्ध करवाना,मेरे बछड़े के पीने के बाद जो भी बचता है,,उसे तुम ले जा सकते हो।"

बालक गणेश को गाय की बातें बहुत अच्छी लगीं, बछड़े के पीने के बाद गणेश और मूषक ने छक कर दुग्ध पान किया और अपनी नन्ही हथेली पर जितना दूध बन सकता था, भर लिया और अपने साथ लाये हुए केले गाय को खिला कर धन्यवाद दिया और आगे बढ़ गये।

मूषक ने जिज्ञासा वश पूछ लिया,  "स्वामी मैं देख रहा हूँ। आप जब किसी से कुछ लेते हैं तो उसे बदले में कुछ देते भी हो। ऐसा क्यो ?"

" प्रिय मूषक ! यह सामान्य शिष्टाचार है कि हम जब किसी से कुछ गृहण करते हैं तो बदले में कुछ देना भी चाहिए,,इससे एक दूसरे के प्रति प्रेम पनपता है।"

(बालक गणेश के हाथों में गन्ने )

आगे चलने पर उन्होंने एक चींटी को देखा,जो एक चावल को उठाकर ले जा रही थी। अपने शरीर से अधिक वजन होने के कारण कभी चावल पीछे छूट जाता तो कभी चींटी उसे अपनी पूरी शक्ति से पुनः पुनः उठा कर आगे बढ़ने की कोशिश करती। उसकी तरह अन्य चींटियां भी दीवार पर चल रहीं थीं और कुछ के मुँह में चावल के दाने लगे हुए थे। बड़ा अद्भुत दृश्य उपस्थित हो रहा था।

बालक गणेश ने जब यह देखा कि एक छोटी सी चींटी भी अपना भोजन जुटाने के लिए कितनी मेहनत करती है तो उनका हृदय चींटी के प्रति सम्मान से भर उठा। उन्होंने चींटी से कहा,, " हे नन्हे प्राणी चींटी ! ! मेरी आज खीर खाने की इच्छा है क्या तुम मेरी कामना पूरी कर सकती हो ? ? (इतना कहकर बालक गणेश ने अपने नेत्रों से उनका चित्र अपने हृदय पर अंकित कर लिया।

चींटी ने जब बालक को देखा तो देखती रह गयी। आज तक उसने किसी को खुद से याचना करते हुए नहीं देखा था। चींटी ने कहा,,

"हे बालक खीर तो मैं नहीं बना सकती हूँ, पर तुम यह चावल ले सकते हो। भूखे को भोजन देना हर प्राणी का कर्तव्य है। आज मैं धन्य हो जाऊँगी तुम्हारे काम आकर।"

बालक गणेश ने चावल ले लिया और उसे अपना गन्ना दे दिया।

गन्ने का उपहार पाकर चींटी बहुत प्रसन्न हुई और बालक गणेश को अपने बिल के पास ले गयी तथा अपना जमा किया चावल का भंडार मूषक से बिल के अंदर घुस कर लाने के लिए कहा। बालक गणेश की अनुमति पाकर मूषक ने बहुत से चावल लाकर बालक गणेश के हाथ पर रख दिये।

(बालक गणेश की एक हथेली में चावल और दूसरी में दूध )(शहर और गांव दोनों ही दृश्य)

इस तरह वे दोनों आगे बढ़ कर इंसानों की बस्ती में पहुँच गये। सामने ही उन्हें एक बहुत बड़ा बंगला दिखाई दिया,तो उन्होंने मुख्य द्वार पर लगी घंटी बजा दी।

फाटक के दूसरी ओर से गार्ड ने पूछा,, "कौन है ?किसने घंटी बजायी है ?"

"भैया जी बहुत जोर की भूख लगी है, क्या आपकी मालकिन मेरे लिए खीर बना देंगी ? जरा पूछ कर तो बताओ,,मेरे पास दूध और चावल तो है,, उन्होंने अपनी हथेलियों पर रखे दूध और चावल को दिखाते हुए कहा।

गार्ड ने जब दूध और चावल देखा तो उसे हँसी आ गयी। उसने हँसते हुए अपनी मालकिन को सभी बातें बतायीं। मालकिन ने कहा,, "कोरोना काल में बच्चे भी क्या करें,नये -नये तरीके खोज रहे हैं अपने मनोरंजन के लिए।जाकर तुम भी कह दो कि हम तो अब सभी सामान आनलाइन आर्डर करके मंगा लेते हैं। अब ये खीर बनाने का काम कौन करेगा। कितना कुछ रेडी टू यूज सामान बाजार में उपलब्ध है,आखिर वह किसके लिए बना रही हैं कम्पनियाँ ?"

कुछ चाकलेट और मफिन गार्ड को देकर कहा, लो यह दे दो बच्चे को।"

गार्ड ने सभी सामान बालक गणेश को दे दिया और सभी बातें बता दीं।

बालक गणेश ने चाकलेट और मफिन मूषक को देते हुए कहा," प्रिय मूषक ! लो यह चाकलेट और मफिन्स खा लो, अब तुम्हारा आकार भी बड़ा हो गया है,,भूख ज्यादा लग रही होगी तुमको।"

मूषक ने कहा, "बहुत होशियार हो आप ! मेरे दांत खराब हो जाएंगे चाकलेट खाकर,,यही चाहते हो न,,,,जिससे मैं मोदक न खा सकूं ? " मूषक ने अपनी आँखे चमकाते हुए कहा

"देखो ! मैंने भी खायी है, थोड़ा खाने से कुछ नहीं होता,,,पता है इसको खाने से ताकत आती है।"

गणेश ने एक चाकलेट पीस खाया और उछल कर दिखाया"देखो मुझे मुझमें इसे खाने से ताकत आ गयी है।"

अब वह आगे बढ़े और अन्य घरों में भी अपने चावल और दूध दिखाते हुए खीर बनाने का आग्रह किया तो सभी ने उनका मजाक बना कर आगे का रास्ता देखने के लिए कहा। अतः अपनी खीर गलती हुई न देखकर उन्हें बड़ी निराशा हुई और वह अपने चावल और दूध को कच्चा चबा जाना चाहते थे कि उनकी नजर एक झोपड़ी पर पड़ी, जहाँ एक वृद्धा कुछ बच्चों के साथ खेल रही थीं। बालक गणेश आगे बढ़े और वृद्धा को प्रणाम करके कहा,,,"काकी ! आप तो बच्चों के साथ खेल री हैं, फुरसत हो तो एक बात कहूँ।"

"अरे बेटा ! एक क्या चार बातें कर ले, मैं तो खाली ही बैठी हूँ, मेरा बेटा परदेश में है तो इन छोटे बच्चों के संग समय बिता लेती हूँ,दो चार कहानी कविता भी सुना देती हूँ, ज्ञान के संस्कार बचपन में पड़ जाते हैं तो जिंदगी भर काम आते हैं। आजा रे लाला ! तू भी बैठ जा इन बालकों के पास।"

"काकी ! मुझे भूख लगी है,,मेरे पास दूध और ये चावल हैं, इनसे मेरी खीर बना दो, आपका बड़ा उपकार होगा।"

वृद्धा ने जब बालक गणेश की हथेलियों पर दूध चावल देखा तो उन्होंने कहा, " बेटा ! मैंने भी अपने बचपन में ऐसे ही खीर पकवान बनाकर खूब खेल खेले हैं। ला ! मैं बना दूँगी, बैठ जा इन बच्चों के साथ। मैं भगोना लेकर आती हूंँ।

वृद्धा अम्मा जब बर्तन लेकर बाहर आयीं तो बालक गणेश ने कहा,,"काकी माँ ! इतना छोटा बर्तन लायी हैं आप ! बड़ा लाइए"

‌‌अम्मा घर का सबसे बड़ा बर्तन लेकर आ गयीं तो गणेश बालक उसमें अपनी हथेली पर रखा दूध पलटते जा रहे हैं, बर्तन पूरा भर जाता है पर दूध की कोई कमी नहीं हो रही और न ही चावलों की कमी हो रही है। बालक गणेश ने दोनों हथेलियों को बर्तन में उड़ेल दिया है, हथेलियों से जैसे दूध और चावलों की नदी बह चली हो। सब बच्चे और वृद्धा देखते रह जाते हैं। बालक गणेश ने कहा, 

("अब पूरे गाँव को न्योता दे दो, आज कोई खाना नहीं बनाएगा।सभी की दावत यहीं पर होगी।")

वृद्धा ने सभी बच्चों को भेज कर पूरे गांँव में खबर करवा दी और ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज सभी का खाना मेरे यहाँ पर होगा, सभी जन आमंत्रित हैं,,पर मन में एक भय भी था। कहीं खाना कम पड़ गया तो क्या होगा ?"

(सभी ओर चहल पहल,सभी के मुंह पर मास्क और हाथों में सेनेटाइजर और दो गज की दूरी से आना -जाना और सभी कार्य करने के लिए दूर -दूर चूल्हे बना दिए गये। सभी का टेम्परेचर लेने के लिए नर्सें बुलाई गई।)

  गांँव के लोग इकट्ठे हुए, भट्टियाँ बनाई गयीं और उनमें लकड़ी रख कर आंच सुलगा दी गयी है, गणपति आह्वान होने लगता है

हे विघ्नों के विनाशक ! गणपति गणेश सिद्ध !

गणपति बप्पा मोरया, मोरया मोरया मोरया"

भगौने,पतीले पूरे गाँव से मंगाकर उनमें खीर बनने के लिए रख दी गयी। दोपहर होते-होते सब खीर पक कर तैयार हो गयी। बालक गणेश का कहीं अता-पता नहीं था तो वृद्धा ने इधर उधर देखा और आवाज लगाई और एक कटोरी में खीर लेकर भगवान गणेश का भोग लगा दिया।अब वह खीर खाने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही थीं, अतः एक कमरे में दीवार का सहारा लेकर वह खीर को खाने लगी कि तभी वहाँ बालक गणेश पहुँच जाते हैं तो वृद्धा पूछती हैं,"कहाँ चले गये थे ? चलो अब खीर खा लो,पहले तो बड़ी भूख लगी थी और खीर खाने का मन था और जब खीर बन गयी तो कहीं अता पता ही नहीं है।"

"काकी ! पंडालों में भक्ति और कीर्तन का आनंद लेने चला गया था और खीर तो मैंने पहले ही खा ली।"

"कब खा ली ? मैंने तो कहीं देखा नहीं खाते हुए।"

"अरे काकी जब तुमने खीर खाने से पहले भोग की कटोरी पूजा के आले में रखी थी,तभी खायी थी, अब तुम खाओ और पूरे गांव को खिलाओ। मैं अब जा रहा हूँ अपने घर अपनी माँ के पास" इतना कहकर वह सरपट वहाँ से दौड़ गये।

वृद्धा काकी उन्हें पकड़ने को दौड़ी,वह भागती जा रही थीं और कहती जा रही थी,"अरे गणेशा !, लाला गणेशा !"

गणपति बप्पा मोरया,अगले बरस तू जल्दी आ

गणपति बप्पा मोरया मोरया मोरया

मंगल मूर्ति मोरया मोरया मोरया

अगले बरस तू जल्दी आ"

वृद्धा दौड़ती जा रही थी तो गाँव वालों ने उसे सम्भाला और घर वापस ले आये खाने के बाद भी जो खीर बची थी, उसे गाँव के पशुओं को खिलाया गया और उसके बाद बची शेष खीर को अपने खेत में मिट्टी के नीचे दबा दिया।

एक महीने बाद वृद्धा का बेटा वापस आया तो गाँव में खीर के चर्चे सुने, उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।

घर पहुँच कर उसने अपनी माँ से सवाल किया, "अम्मा तुमने पूरे गाँव को खीर खिलायी और मेरे लिए कुछ बचाया कि नहीं।"

वृद्धा ने कहा" बेटा ! क्या करती ? तुम यहाँ होते तो तुम भी खा लेते, बहुत सी खीर बची थी,वह मैंने खेत में दबा दी थी मिट्टी के नीचे,,चल ! तुझे दिखाती हूँ।"

  दोनो माँ और बेटे खेतों में पहुँचे और उन्होंने मिट्टी को हटा कर देखा तो जमीन जगमग, जगमग हो रही थी। हीरे, जवाहरात,मूंगे, माणिक वहाँ झिलमिला रहे थे। वृद्धा उन्हें देखकर हाथ जोड़कर गणेश को धन्यवाद दे रही थी और उसका बेटा उन हीरे जवाहरात को अपने अंगोछे में भर कर घर ले आया और अपनी मांँ से खीर बनवाकर खायी।

उधर गणेश अपने लोक में पहुँच जाते हैं और अपना जन्मोत्सव मना रहे हैंऔर पृथ्वी लोक पर की गयी लीला का वर्णन कर रहे हैं।

सभी उपस्थित देवता बालक गणेश की बातें बड़े ध्यान से सुन रहे हैं और अपनी शंका समाधान भी कर रहे हैं।

पूरा वातावरण सुगंधित हो रहा है और विविध फूलों से सजा है, वह फूल धरती पर नहीं खिलते सिर्फ देवताओं की धरती पर ही खिलते हैं।

यह कहानी प्रचलित कथा गणेश जी की खीर कहानी के आधार पर आधारित है, लेकिन इसमें वृद्धा के घर पहुँचने से पहले की पूरी कहानी मेरी अपनी कल्पना है। सभी संवाद और दृश्यांकन पूर्णतः मौलिक और स्वरचित हैं।


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