ठोकर
ठोकर
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मैंने जिन्दगी में जाने
खाई है कितनी ठोकर
हर बार बस यही सोचा
मायूसियों में खोकर
अगले कदम पे सम्भलूँ
खाकर के शायद ठोकर
उम्मीद है कि अब भी
जग जाऊँ शायद सोकर
दुनिया ने मुझको रोका
हर बार जैसे टोका
दुनिया की हर ख़ुशी से
खाया है मैंने धोखा
इक ज़िंदगी में सोचा
लम्हे गुज़ार दूँगी
इस ज़िंदगी को शायद
अब फिर सँवार दूँगी
अब तलक तो मैंने
एक ख़्वाब ही था देखा
कभी ज़िंदगी में बदले
किस्मत की ये भी रेखा
जितनी ख़ुशी थी पाई
सब रख दिया है खोकर
मैंने जिन्दगी में जाने
खायी हैं कितनी ठोकर