गरीबी
गरीबी
सुनसान वो जगह थी
ख़ामोशियों में डूबी
दुनिया का एक हिस्सा
दुनिया से आकर रूठी
एक रात मैंने देखा
एक स्वप्न ज़िंदगी का
बलि दे दिया हो जैसे
दुनिया की हर ख़ुशी का
ये चीख चीख करके
कौन रो रही है........
क्यों सिसकियों में अपनी
दुनिया डुबो रही है
जब पास जा के देखा
सिसकती आत्मा थी
नारी थी एक ऐसी
एक ऐसी वो अबला थी
पहने हुऐ थी कपड़े
चिथड़े लटक रहे थे
तन उसके सूख कर के
काँटो से हो गऐ थे
आहट को सुन के मेरे
ख़ामोश हो गई वो
जब मैंने उससे पूछा
क्या नाम है तुम्हारा?
ज़िंदगी से रूठ कर
क्यूँ मायूस हो गई हो
अपना नहीं है कोई
दुनिया में क्या तुम्हारा
सिसकियों को रोक कर
अपने तड़प उठी वो
आँखों में लेकर आँसू
सीने में दर्द लेकर
ख़ामोशियों को चीर कर
जैसे चिल्ला उठी वो.......
नारी हूँ मैं न अबला
ना मौत हूँ ना जीवन
चारों तरफ है फैली
एक बेबसी के जैसी
सब देखते हैं मुझको
घृणा की दृष्टियों से
मेरा रूप है घिनौना
मैं दरिद्रता की देवी
गरीबों को मैंने घेरा
मेरा नाम है गरीबी