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कलुषित इतिहास

कलुषित इतिहास

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सहनशीलता भी काँप उठी है

तेरी दुष्कृत्य कृत्यों से

जग से मुँह छुपाऐं कैसे

डर लगता है जीने में

भारत माँ भी है शर्मिन्दा

तुझ कपूत के जनने से

हर नारी अब डरती है

तेरी जननी बनने से

असंतुलित वातावरण में

अब मुश्क़िल है

पल भर लेना साँस

जगत कर रहा आज भर्त्सना

मानवता का हो गया है ह्रास

क्यों कर तुले हुऐ हो तुम

रचने को कलुषित इतिहास ।।।।

 

 

 


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