सदाचार है
सदाचार है
सदाचार की भाषा
सुनने गुनने से पहले
लोग मंदिरों मे
संतों मुनियों के
आश्रमों मे
खुशी से श्रध्दा से
मन से जाते थे
लोग घरों मे
चौराहो मे
भागवत रामायण
रामलीला कराते थे
उदारता श्रध्दा से
सभी सहयोग करते थे
बड़े बूढ़े महिलायें
सभी इकट्ठा होकर
खुशी से सुनते थे ,
अब न वो आचार्य है
न प्रगाण पंडित है
न सदाचार है
न ही शिष्टाचार है
आयाराम गयारामो ने
आश्रम खोल रखे है
धर्म के नाम से
अधर्म करते है
धर्म को बदनाम
करते हैं ,
मंदिरो मे अमीर लोग
लाखो का चढ़ावा
मर्जी से चढाते हैं
पता नही इतना पैसा
कौन सी काली
कमाई से पाते हैं ,
लोगो की आँखो मे
धूल झोकते हैं
और झूठी
उदारता दिखाते हैं ।