बरसी
बरसी
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हूँ अब भी तुम्हारी स्मृतियों में
की बिसर गई छवि मेरी
मरी हूँ मैं तो हज़ारों मरण
गत बिताये तुम बीन जितने क्षण
आज याद आए वो हर पल,
कण भर बची यादें जो उर में
आज बरसी है हमारी जुदाई की
धूमधाम से मनाने आओ
निष्प्राणों में उर्जा भर दो
मानस में सीत शतदल
छेड़ कर कुछ सरगम दिल में
पुनर्वसन इंतज़ाम कर दो
मन भीतर कुछ पावन कर दो
शोक हर बौछार सी भर दो
शोकमग्न बैशाखी धूप में
उर बसकर सुख सावनी मल दो
बरसी हम कुछ यूँ मनाएँ
मैं तुम में तुम मुझ में बस लो
जुड़ कर साथ गंगा के तट पर
इश्क की अस्थियाँ विसर्जन कर ले