दोस्त
दोस्त
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छत, दरवाज़े और दीवार सब ढह गई
और वो ख़्वाब के आशियाँ बनाता रहा
बस्तियाँ जल गईं उसकी आँखों के आगे
और वो परियों के दास्ताँ सुनाता रहा
जो दोस्त थे सबसे ही दूरियाँ बना ली
और रकीबों से मोहब्बत निभाता रहा
जो अच्छाइयाँ थी मुझमें सब छिपा दी
और बुराइयां उंगलियों पे गिनाता रहा
इंसान सब बँट गए हिन्दू और मुस्लिम में
सियासत मजहबी तराने गुनगुनाता रहा