जानता हूँ
जानता हूँ
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क्या-क्या चुकानी पड़ती है, कीमत जानता हूँ
भुगत चुका हूँ पैसों की, अहमियत जानता हूँ
आते ही पास इसके अच्छे-अच्छों की
कैसे बिगड़ जाती है, नियत जानता हूँ
लाखों- करोड़ो आए, आकर चले गये
पर ज़रा भी न बदले, ऐसी शख्सियत जानता हूँ
कैसे बन जाते है लोग, दुनिया में इज्जतदार
छीनकर औरों की, मिल्कियत जानता हूँ
अपनी दुकानदारी बढ़ाने के लिए डॉक्टर
कैसे बिगाड़ते है ज्यादा, तबियत जानता हूँ
औरों की किस्मत का करते है फैसला
खुद जिनमे नहीं जरा भी काबिलियत जानता हूँ