माँ
माँ
तेरे आँचल को थामे
पूरा जहाँ मैं घूम आती थी
तुझे याद है ना माँ
शाम जब ढल जाए
थक के चूर तेरी गोद में
सुकून से सर रख लिया करती थी
वापस गोद में उठा ले
आँचल में छुपा ले
मीठी सी लोरी सुनाकर
आज फिर मुझे सुला दे ना माँ
आज फिर मुझे सुला दे ना माँ
जब भी मैं घबरा जाती
मुझे कसकर गले से लगा लेती थी
तुझे याद है ना माँ
मेरी हर छोटी खुशी में तू झूमती गाती
मेरे हर दर्द को खुद में समा लेती थी
अब नींद नहीं आती
जिंदगी रुलाती
अँधेरा भी सताता
पास बुलाकर
आज फिर मुझको बाहों में भर ले ना माँ
आज फिर मुझको बाहों में भर ले ना माँ
खुद भूखी रह
मुझे भरपेट खिलाती थी
तुझे याद है ना माँ
हर रोज खर्चा बचाकर
बाज़ार से मेरे पसंदीदा सामान तू ले आती थी
अब किस से माँगू वो दुलार
तेरे प्यार से बनाए हुए खाने का वह स्वाद
जोरों की भूख लगी है
आज फिर अपने हाथों से एक कौर खिला दे ना माँ
आज फिर अपने हाथों से एक कौर खिला दे ना माँ
चोट मुझे लगती
आँख तेरी नम होती थी
तुझे याद है ना माँ
खुद को भूल
मेरा ख्याल तू रखती थी
अब थक सी गई हूँ
हँसना भूल सी गई हूँ
वक़्त के दिए ज़ख़्मों पर
आज फिर मरहम तू लगा दे ना माँ
आज फिर मरहम तू लगा दे ना माँ
भीड़ में संग रहती
आँखों से ओझल न होने देती थी
तुझे याद है ना माँ
हर बुरी नज़र से बचाकर
अपनी नज़रों से वार देती थी
अब अकेले कहीं रह ना जाऊँ
ज़िंदगी के मेले में खो ना जाऊँ
हाथ पकड़
आज फिर रस्ता तू पार करा दे ना माँ
आज फिर रस्ता तू पार करा दे ना माँ