एतबार ...
एतबार ...
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जिस पे लफ़्ज़ों का वार होता है
उसका दिल बेकरार होता है
माँ का साया जहाँ नहीं होता
घर वो उजड़ा दयार होता है
छीन कर हक किसी का यूँ जीना
दिल पे अपने तो बार होता है
चोट लगती है जब भी अपनों से
ग़ैरों पर ऐतबार होता है
हम जियें कैसे यूँ उसूलों पर
हम से हरगिज़ न यार होता है
कोई हम को कलाम बतलाऐ
जाने कैसे ये प्यार होता हैै।
