चाँद सा कंदिल
चाँद सा कंदिल
एक चाँद सा कंदिल लिए
उर्मिला सी विजोगन तलाशते अपनी चाहत
राधा सी बावरी बन
तलबगार मीरा सी
शांत अहल्या सी धीरज धरे
अपने आराध्य का रास्ता देखें बुत सी पड़ी है
नग्न आकाश तले तन को जलाते
बिरहा की अग्नि में जले
मोह के धागे में बाँध गया था कोई
एक मेह भीगती रात में
फिर मिलूँगा लौटते
एक वादा रख गया चौखट पे
गल गए है सपने सब वादे, कसमें भी ढ़ल गए वेदना की धूनी में
कंदिल से धुँआँ उठता है एक बुत के साये को लपेटे
वो देखो कोई चला आ रहा है कंदिल के उजाले की ओर खींचता
आज एक बार फिर जलती रात में
काश
उद्धार हो बुत का अपने आराध्य के हाथों