जिसको याद कहते हैं...
जिसको याद कहते हैं...
उसको याद करने में सिर्फ़ एक ख़तरा है,
फिर से याद आएगी
फिर से दिल दुखाएगी
फिर से वो सभी मंज़र,आँख से छलक जाएँ,
फिर से बेख़यालाना,हम कहीं भटक जाएँ,
ये भी कोई अच्छा है?
दिल मगर हाँ! सच्चा है,
दिल जो हमसे कहता है,
याद तो करो लेकिन
रात के अंधेरे में,
जब कोई नहीं जगता,जब कोई नहीं होता,
जब सदाएँ भी यारों,सब ख़लाओं में जाकर,
घूमती-भटकती हैं, अपना सिर पटकती हैं,
कोई तो सुने यारों!
सुन के सिर धुने यारों!
पर कोई नहीं मिलता,इन सदाओं को लेकिन
हमसे लोग सुनते हैं
मन ही मन में गुनते हैं
शायरी में बुनते हैं
फिर ग़ज़ल कहाती है!
मेरी हर ग़ज़ल यारों!
एक ख़त समझ लीजे
जो लिखे गए मुझसे,
रात की ज़दों ही में,
उसकी आमदों ही में...
जिसको याद कहते हैं…!