क़यामत ................
क़यामत ................
क़यामत ................
इस बार क़यामत आने वाली है
चलो , तुम टूटे उम्मीदों को बाँध लो
मैं अपने बिखरे सपनों को चुन लेती हूँ...।
फ़िर हमें कहीँ दूर जाना है
जहाँ सागर से आसमान मिलता है
ज़मीन हवा से खुलकर बात करती है
बादलों की गाँव और मखमली छाँव है.....।
काँच की आस को सम्भाल कर रख लो
सिने की घुटन को दबा कर जी लो
मैं चाहत की पोटली सजाती हूँ....।
तुम कहते थे इस बार हम ख़ूब रात बिताऐंगे
समंदर की ठंडी रेत में
चाँद को ख़ामोश निहारेँगे
अगर क़यामत से पहले
ये उम्र दम तोड़ दे
तो किसी बहाने हम ये क़समेंं तोड़ देंगे....।
देखो , सब अपने जगह सो रहें हैं
ये पेड़ ये किनारे ये रस्ता ये नज़ारे
तुम ना जगाओ इन्हें
कयामत इन्हें चूमने वाली है...
ये सब मदहोशी की आग़ोश में
सो जाने वाले हैं....।
तुम सारे सौखियाँ समेट लो
हर तरफ़ कहर होगा
तुम अपने ख़ौफ़ को कम कर लो
मैं जी रहीं हूँ क़तरे में
अपने जिस्म में मेरे जिस्म ओढ़ लो....।
इस बार कयामत आने वाली है....।