एक पेड़ का अंतिम वचन
एक पेड़ का अंतिम वचन
कल एक पेड़ से मुलाकात हो गई।
चलते चलते आँखों में कुछ बात हो गई।
बोला पेड़ लिखते हो संवेदनाओं को।
उकेरते हो रंग भरी भावनाओं को।
क्या मेरी सूनी संवेदनाओं को छू सकोगे?
क्या मेरी कोरी भावनाओं को जी सकोगे?
मैंने कहा कोशिश करूँगा कि मैं तुम्हे पढ़ सकूँ।
तुम्हारी भावनाओं को शब्दों में गढ़ सकूँ।
बोला वो अगर लिखना ज़रूरी है तो मेरी संवेदनायें लिखना तुम।
अगर लिखना ज़रूरी है तो मेरी भावनायें समझना तुम।
क्यों नहीं रुक कर मेरे सूखे गले को तर करते हो?
क्यों नोंच कर मेरी सांसे ईश्वर को प्रसन्न करते हो?
क्यों मेरे बच्चों के शवों पर धर्म जगाते हो?
क्यों हम पेड़ों के शरीरों पर धर्मयज्ञ करवाते हो?
क्यों तुम्हारे बच्चे तोड़ कर मेरी टहनियां फेंक देते हैं?
क्यों तुम्हारे सामने मेरे बच्चे दम तोड़ देते हैं?
हज़ारों लीटर पानी नालियों में तुम क्यों बहाते हो?
मेरे बच्चों को बूंद बूंद के लिए क्यों तरसाते हो?
क्या तुम सामाजिक सरोकारों से जुदा हो?
क्या तुम इस प्रदूषित धरती के खुदा हो?
क्या तुम्हारी कलम हत्याओं एवं बलात्कारों को लिखती है?
क्या तुम्हारी लेखनी क्षणिक रोमांच पर ही बिकती है?
अगर तुम सचमुच सामाजिक सरोकारों से आबद्ध होते।
अगर तुम सचमुच पर्यावरण के लिए प्रतिबद्ध होते।
तो लेखनी को चरितार्थ करने की कोशिश करो तुम।
पर्यावरण संरक्षण का आचरण बनो तुम।
कोशिश करो कि कोई पौधा न मर पाये।
कोशिश करो कि कोई पेड़ न कट पाये।
कोशिश करो कि नदियां शुद्ध हों।
कोशिश करो कि अब न कोई युद्ध हो।
कोशिश करो कि कोई भूखा न सो पाये।
कोशिश करो कि कोई न अबला लुट पाये।
हो सके तो लिखना की नदियाँ रो रहीं हैं।
हो सके तो लिखना की सदियाँ सो रही हैं।
हो सके तो लिखना की जंगल कट रहे हैं।
हो सके तो लिखना की रिश्ते बंट रहें हैं।
लिख सको तो लिखना हवा जहरीली हो रही है।
लिख सको तो लिखना कि मौत पानी में बह रही है।
हिम्मत से लिखना की नर्मदा के आंसू भरे हैं।
हिम्मत से लिखना की अपने सब डरे हैं।
लिख सको तो लिखना की शहर की नदी मर रही है।
लिख सको तो लिखना की वो तुम्हे याद कर रही है।
क्या लिख सकोगे तुम गोरैया की गाथा को?
क्या लिख सकोगे तुम मरती गाय की भाषा को?
लिख सको तो लिखना की थाली में कितना जहर है।
लिख सको तो लिखना की ये अजनबी होता शहर है।
शिक्षक हो इसलिए लिखना की शिक्षा सड़ रही है।
नौकरियों की जगह बेरोज़गारी बढ़ रही है।
शिक्षक हो इसलिए लिखना कि नैतिक मूल्य खो चुके हैं।
शिक्षक हो इसलिए लिखना कि शिक्षक सब सो चुके हैं।
मैं आवाक था उस पेड़ की बातों को सुनकर।
मैं हैरान था उस पेड़ के इल्जामों को गुन कर।
क्या ये दुनिया कभी मानवता युक्त होगी?
क्या ये धरती कभी प्रदूषण मुक्त होगी?
मेरे मरने का मुझ को गम नहीं है।
मेरी सूखती शाखाओं में अब दम नहीं है।
तुम्हारी सांसे मेरी जिंदगी पर निर्भर हैं
मेरे बिना तुम्हारी जिंदगानी दूभर है।
हमारी मौत का पैगाम पेड़ का ये कथन है।
यह एक मरते पेड़ का अंतिम वचन है।