ज़िन्दगी एक पहेली

ज़िन्दगी एक पहेली

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"आँचल, तू भी अपना सामान पैक कर ले। तू भी विमल के साथ चली जा मंसूरी। उसे थोड़ा ही काम है मंसूरी में फिर तुम दोनों घूम लेना। मीनू और सुमित (आँचल के जेठ-जेठानी) भी वहां निक्की का एडमिशन करवा कर फ्री हो जाएंगे, फिर सब मिल कर 5-6 दिन घूम फिर कर आना।  मुन्ना को मैं संभाल लूंगी और तुम्हारे पापा बिज़नेस देख लेंगे।" आँचल की सास ने बहुत ही प्यार से हक़ जमाते हुए आँचल से कहा। आँचल ने उनके गले में बाहें डालते हुए कहा "मम्मी...आप और पापा बिल्कुल अकेले हो जाओगे। भैया-भाभी और विमल का जाना तो ज़रूरी है। मेरा आप लोगों को छोड़ कर जाने का मन नहीं है। मैं फिर कभी चली जाऊँगी।" संध्या जी ने अब उसे थोड़ा समझाते हुए कहा "बेटा तुमने अपने हनीमून से आते ही हमें खुशखबरी सुना दी थी, फिर प्रेगनेंसी मुश्किल होने की वजह से डॉक्टर ने तुझे बैड रेस्ट बता दिया था। मुन्ना कमज़ोर हुआ था, इसलिये डॉक्टर ने 6 महीने तक उसका ज़्यादा ध्यान रखने को कह दिया था। कितने समय से बिल्कुल घर में ही क़ैद हो कर रह गयी है। अब सब ठीक है, तो अब तू भी थोड़े दिन घूम आ, तुझे अच्छा लगेगा। आँचल के ससुर जी ने भी संध्या जी की हाँ में हाँ मिलाते हुए आँचल से कहा "इसे हमारा ऑर्डर समझो और जल्दी से अपना सामान पैक करो।"आँचल ने हँसते हुए कहा "जो हुकुम मेरे आका, अभी जा कर सामान पैक करती हूँ। आपकी बात कैसे टाल सकती हूँ।" बहुत ही प्यारा सा परिवार था उनका। सास-ससुर ने दोनों बहुओं को बिल्कुल बेटी बना कर रखा हुआ था और बहुएं भी उन्हें अपने माँ-बाप से भी ज़्यादा प्यार और सम्मान देती थीं।

अगले दिन सुबह जब विमल गाड़ी में सामान रख रहा था तो आँचल संध्या जी के गले लग कर बहुत रोई और बोली "मम्मी आप को, पाप को और मुन्ना को छोड़ कर जाने का मन ही नहीं कर रहा।" संध्या जी की भी आँखें भर आई बोली "अब जल्दी गाड़ी में बैठ, मुझे भी रुलायेगी क्या?" विमल ने गाड़ी चला दी आँचल बहुत देर तक पीछे मुड़ कर रोते हुए उन सबको देखती रही। विमल ने हँसते हुए कहा "ऐसे रो रही हो, जैसे अपना मायका छोड़ कर ससुराल जाते समय रोई थी।"  

सब हँसने लगे, तभी निक्की ने कहा "चाचा- चाची की पसंद का गाना चलाओ, उससे चाची का मूड ठीक होगा।" ऐसे ही सब हँसते-बोलते जा रहे थे, पर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था। एक जगह अचानक गाड़ी के आगे एक गाय आ गयी। विमल ने गाय को बचाने के चक्कर में गाड़ी बहुत तेज़ी से दूसरी तरफ घुमाई, तो गाड़ी बहुत ज़ोर से एक पेड़ से टकराई। उधर की साइड ही आँचल बैठी हुई थी। उसे इतना तेज़ झटका लगा की उसकी गर्दन झटके से दूसरी तरफ लटक गयी। आँचल ने वही दम तोड़ दिया और सबको गंभीर चोटें आईं। आस-पास वाले जल्दी से उन्हें हॉस्पिटल ले गए। कुछ दिनों के इलाज़ के बाद वह सब तो ठीक हो गए पर विमल की तो दुनिया ही उजड़ गई थी। आँचल के सास-ससुर तो बिल्कुल गुमसुम हो गए। वह आँचल की मृत्यु का खुद को ज़िम्मेदार ठहरा रहे थे। पूरा परिवार ही सदमें में था। ऐसे ही कुछ समय निकल गया। एक दिन आँचल के मम्मी-पापा विमल के लिए एक रिश्ता लेकर आये। वह लड़की उनके घर के पास ही रहती थी। उसके पति का कुछ समय पहले डेंगू की वजह से देहांत हो गया था। उसके दो साल की एक बेटी थी। आँचल के मम्मी-पापा ने उसके सास-ससुर से निवेदन किया की "दोनों बच्चों को माँ-बाप का प्यार मिल जाएगा और विमल और मंशा (उस लड़की का नाम) की अभी उम्र ही क्या है, उन्हें भी जीवन में आगे बढ़ने का मौका मिल जाएगा। विमल तो किसी भी तरह तैयार नहीं था, दूसरी शादी के लिए, पर फिर सब के समझाने से वो मान गया। संध्या जी ने मंशा का नाम शादी के बाद आँचल ही रख दिया और उसने भी बिल्कुल आँचल की तरह पूरा परिवार बहुत ही प्यार से संभाल लिया। आँचल के मम्मी-पापा भी मंशा को आँचल की तरह अपने घर बुलाते और जो बन पड़ता उसे देते। मंशा भी सब तरफ से इतना प्यार पा कर बहुत खुश थी। उसने भी कभी मुन्ना में और अपनी बेटी में कोई फर्क नहीं किया। विमल को भी मंशा को देख कर यही लगता था, जैसे आँचल ही वापिस आ गयी उसके जीवन में।



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