यादगार बचपन
यादगार बचपन
क्या कहना उस दुनिया का भी जहां बस अपनी चीजों का पता होता है। अपनी खुशियां ही हर जगह मिलती है न किसी से कोई बैर न कोई ईर्ष्या। बचपन तो हर इंसान का भला होता है जिसे हर कोई पुनः प्राप्त करना चाहता है। मेरे बचपन से जुड़ी चीजें भी कुछ ऐसी ही हैं जिन्हें आज एकांत में बैठकर सोचते हैं तो चाहकर भी न तो उसे पा सकते हैं न ही दोहरा सकते हैं। वो बचपन जब घरवाले खेतों में काम पर चले जाते थे और हमें घर की रखवाली करनी होती थी और हम रखवाली की जगह ना जाने कितना नुकसान कर जाते थे।
एक बार की बात है जब घर में कोई नहीं था और मैं बहुत छोटी थी। पहले समय में गांवों में साधु महात्मा घूमते रहते थे, जिन्हें खाना और भिक्षा की जरूरत होती थी। गांव में आए और घर घर घूमने लगे और खाना मांगने लगे। मुझे बहुत डर लगता था क्योंकि हमें डराया जाता था कि बाबा लोग छोटे बच्चों को उठाकर ले जाते हैं। और मैं साधु की डर से नजरें बचाकर छुपने लगी घर का दरवाजा बंद किया हुआ था। और घर के आंगन में एक बड़ा सा पानी का ड्रम था जिसे मैंने बमुश्किल लुढ़काया और उसके अंदर जाकर छुप गई थी। बाबा आवाज लगाते मोहल्ला से दूर हो गए और फिर मैं बाहर आई और मम्मी खेत से आती दिखाई दी और मुझे घबराए हुए देख पूछने लगी मैंने बताया तो हंसी भी और गले से लगाया। फिर बोली की कल से मैं भी उनके साथ खेत में जाया करूंगी और मैं भी खुश हो गई।
खेतों में कभी छोटे छोटे घर बनाया तो कभी चिड़िया के घोंसले देखते और जिस घोंसले में अंडे दिख जाते उसे फिर रोज देखते जब तक कि उसमें छोटे बच्चे नहीं हो जाते और फिर उन्हें दाना देते जब वो घोंसले से उपर को चोंच किए अपनी मां को आवाज देते थे।
