विषय दो किताबें
विषय दो किताबें
सुमन गर्मी की छुट्टियों में बच्चों को लेकर मायके गई। वहां बहुत मजा किया नाना के घर गए और आम ना खाए ऐसा भला कभी हुआ है,छुट्टियां भी पूरी हो गई है, सुमन के पति भी उसे लेने आ गए। पति ने पूछा पैकिंग हो गई? हां हो गई है। वहां से निकलने के बाद उसके पति को गुस्सा आ गया। इतना सारा सामान ! लाई तो कम थी,कितना बढ़ गया ।मध्य स्वर में बोली "कुछ नहीं बस नाना नानी का प्रेम है , इस बैग में।" उसका पति बोला "जिसको उठाना पड़ता है उसे पता लगता है।" घर पहुंचते ही उसके पति ने बैग खोला। गुस्से में बैग को टटोलने लगा। निगाह दो किताबों पर पड़ी यह क्या वजन उठा लाई किताबें झटके से उसने जमीन पर फेंक दी। सुमन झट से दौड़ी आई किताबों को उठाकर गले से लगा लिया। बोल पड़ी यह मेरा सपना था, जो पूरा नहीं हो पाया। आंखों में से आंसू बहने लगे। अब सुमन के पति की भी आंखें नम थी। उसने सुमन के हाथ पकड़े और कहा "अब ये मेरा सपना है जरूर पूरा होगा।"