रूचि का भाव

रूचि का भाव

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रुचि ने उसके पति से बोला बहुत दिन हो गए हैं, हम अपने घर नहीं गए दीवाली भी आ रही है। बच्चे भी सबको याद करते हैं पति ने कहा ठीक है पैकिंग करो हम लोग कल निकलते हैं।

रुचि अपने पति और बच्चों के साथ ससुराल पहुंच कर सबसे मिले, रुचि के पति ने बैग में से दीवाली के गिफ्ट सभी को दिए। अब खुशी खुशी रुचि अपनी दादी के पास गिफ्ट देने गई। रुचि का पति बोला दादी से, दादी ये आपके लिए साड़ी लाई है। दादी ने कहा यह तो मेरा बेटा लाया है वह पैसे नहीं कमाती है।

यह सुनकर रुचि को बहुत बुरा लगा चेहरा उतर गया।

रुचि ने कुछ करने की ठानी सौ रुपए की लागत से व्यापार प्रारंभ किया रुचि को सफलता मिलने लगी। अब उसने अपनी दादी के लिए साड़ी ख़रीद कर मिलने गई।

अरे यह क्या दादी तो अंतिम सांस ले रही थी, रुचि ने झट से जाकर दादी के सिर पर साड़ी ओड़ाई दादी के गले मिलकर बोली आपसे किया वादा मैंने पूरा किया ,दादी भी देख कर मुस्कुराए। देखते देखते दादी ने हमेशा के लिए आँखें बंद कर ली। अंत में रुचि की लाई साड़ी दादी को पहनाकर अंतिम विदाई दी।



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