विशेषज्ञ
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संदीप मास्टर का मुँह ऐसे तमतमा रहा था मानो गालियों की कई खेप उन्होंने अपने खुद के मुहँ पर दे मारी हो, "बताओ घंटो-घंटो लोग लाइन में लगे परेशान हो रहे हैं, सरकार के पास तरीका ही नहीं है; पहले समस्या से निपटने का रोडमैप तैयार करते फिर करेन्सी बंद करते, जनता को इतनी धक्का-मुक्की तो ना करनी पड़ती, सब अंध अक्ल बैठे हैं सरकार में, क्या करोगे भाई?"
"देखो भई! मैं आपकी तरह अर्थशास्त्र और वाणिज्य का माहिर खिलाड़ी तो हूँ नहीं, जो हजार/पांच सौ के नोटबन्दी पर अपनी राय जाहिर करूँ, पर आप दावा कर रहे हैं कि आप होते तो 'ये-वो' तरीका अपनाते, तो यों अफरा-तफरी ना मचती, है ना।" अखिल कुमार जी ने अपनी बात जारी रखी, " तो हमें बचपन की एक बात याद आ रही है, जब भी भारतीय क्रिकेट टीम कोई मैच खत्म करती तो उस पर हमारे 'कालोनी क्रिकेट विशेषज्ञ' अपनी-अपनी राय शुमारी ज़रूर व्यक्त किया करते थे। कोई कहता कि अजहरुद्दीन को पहले फलां खिलाड़ी से बाॅलिंग करानी चाहिए थी, कोई फरमाता कि सचिन को उस नंबर पर बैटिंग करनी चाहिए थी, कोई फिल्डिंग पर राय व्यक्त करता तो कोई पिच पर संतुलन साधने के टिप्स देता, गोया यदि ये विशेषज्ञ बीसीसीआई के सलाहकार पैनल में होते तो हिन्दुस्तान हर बार क्रिकेट में विश्व विजयी बन कर आता।
आज अंतर सिर्फ इतना है कि वहाँ क्रिकेट का विषय था और यहाँ अर्थव्यवस्था है। भई मान गए अर्थशास्त्री जी! आप के ज्ञान का चिराग तो वित्त मंत्रालय में जलना चाहिए, आप मुहल्ले के चाय की दुकान पर क्या कर रहे हैं ?"
