*विज्ञापन- एक लघुकथा *
*विज्ञापन- एक लघुकथा *
करीब 70-80 के दशक की बात है, तब टीवी का अधिक प्रचलित नहीं था। मैं शादी करके ससुराल आ गई थी ।बहुत छोटा सा परिवार था ,सास-ससुर और एक नन्द। सब बहुत अच्छे थे ।मुझे बढ़े लाड़ प्यार से सबने हाथों-हाथ लिया। मैं भी सबका प्यार पाकर निहाल हो गई थी, और खुश भी थी ।मेरे पति बैंक में मैनेजर थे ।
काफी साल बाद हमारे घर में ब्लैक & वाइट टीवी आया और हम सब साथ बैठकर टीवी देखते थे।
बीच में थोड़े विज्ञापन आते थे। मेरी सास ने कोलगेट टुथ पावडर का देखा तो मुझसे होली, मुझे भी ऐसा ही पावडर ला दो, मैंने उन्हें कोलगेट का टुथ पावडर ला दिया। उससे पहले वो काला दंत मंजन करती थी। अब कोलगेट करने लगी ।और बहुत खुश हुई। मैंने सोचा कि किस तरह से टीवी ने एक परिवर्तन ला दिया हमारे घर में, जो जाने कितने वर्षों से चला आ रहा था। लेकिन तब सिर्फ सीधा विज्ञापन ही होता था। विज्ञापन ने हम सबकी जिन्दगी में तहलका मचा दिया है। अब तो विज्ञापन के नाम पर अश्लीलता परोसी जाती है जो सास - ससुर, मां-बाप के साथ बैठकर देखने में शर्म महसूस होती है। वहां से उठकर जाने की इच्छा होती है।
इसलिए इस तरह के विज्ञापनों की भी एक सीमा रेखा निर्धारित करनी चाहिए । *सरोज गर्ग **