विज्ञान मेला
विज्ञान मेला
नोनू का मन उत्साह और उमंग के समंदर में गोते खा रहा था। और खाए भी क्यों ना ? आज उसकी मां उसके साथ उसके विद्यालय में हर साल आयोजित होने वाले विज्ञान मेले में पहली बार जाने के लिए तैयार हुई थी। वह हर साल मां को ले जाने की जिद करता पर मां हर बार कुछ ना कुछ बहाना बनाकर टाल देती पर इस बार उसने अपनी मां को मेले में जाने के लिए मना ही लिया था। वह बार-बार अपनी मां से उछल उछल कर बस एक ही सवाल पूछ रहा था ," और कितना समय लगाओगी तैयार होने में, हम कब चलेंगे स्कूल?"
नोनू पढ़ाई में शुरुआत से ही बहुत तेज था। वह जिज्ञासु प्रवृत्ति का था। उसके पास सदैव अपने प्रश्न तैयार रहते थे। उसकी मां उसके प्रश्नों से बहुत ज्यादा परेशान थी। वह कभी तो उसके प्रश्नों के सही उत्तर देकर उसे संतुष्ट कर पाती और कभी नोनू उसके उत्तरों से संतुष्ट ही ना होता। घर से निकलने से पहले नोनू ने अपनी मां से कहा ,"आप विद्यालय में भी मुझे नोनू कहकर मत पुकारना वहां मुझे तनिष्क नाम से ही बुलाना, नहीं तो मेरे सब दोस्त मेरे घर के नाम को मेरी चिढ़ बना लेंगे।" मां सर हिला कर अपनी सहमति प्रकट करती है।
विद्यालय पहुंचकर मेले के प्रवेश द्वार से ही उसके प्रश्न आरंभ हो जाते हैं। उसकी दृष्टि सबसे पहले मिट्टी की बनी बंदर की तीन मूर्त्तियों पर जाती है। वह उन की ओर इशारा करते हुए अपनी मां से कहता है ,"मां, ये बापूजी के तीन बंदर ही है ना? मां ने हां मैं उत्तर दिया।
वह पहले बंदर की ओर इशारा करते हुए कहता है," यह बंदर हमें सिखाता है कि बुरा मत देखो। लेकिन मां अगर हम बुरा होते हुए देखकर अपनी आंखें बंद कर लेंगे तो हम उसे सुधारेंगे कैसे? इस बंदर की यह बात तो मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आई।
वह दूसरे बंदर की ओर इशारा करते हुए कहता है , "यह बंदर हमें संदेश देता है कि बुरा मत सुनो। लेकिन अगर हम अपने बारे में बुरा सुनेंगे ही नहीं तो हम अपने अंदर की बुराई को कैसे पहचानेंगे और उसे दूर कैसे करेंगे? इस बंदर की बात भी मुझे समझ नहीं आई।
अब वह तीसरे बंदर की ओर इशारा करता है और कहता है, "हां इस बंदर की बात जरूर कुछ समझ आई कि बुरा मत कहो। हमें सच में कभी भी किसी से भी कुछ भी बुरा नहीं कहना चाहिए। हैं ना मां?
"हां, बेटा वैसे तो तीनों ही बंदरों ने सही कहा है। पर पहले दो की बात तुम ठीक से समझें नहीं।"
नोनू ,"तो अब आप ही समझा दो न मां।"
मां, "बुरा मत देखो का अर्थ है हमें हर उस चीज को नजरंदाज करना चाहिए जो हमें सही रास्ते से भटका सकती है। और बुरा मत सुनो का अर्थ है हमें हर उस बात को नहीं सुनना है जो हमारे मन को विचलित कर हमारी आत्मा को मलिन करें।
बालक ध्यान से अपनी मां की बातों को सुनता है और खामोश हो जाता है जैसे मन ही मन उन्हें समझने की कोशिश कर रहा हो। मां यह सोचकर संतोष की सांस लेती है कि आखिरकार वह बालक के जिज्ञासा भरे प्रश्नों को संतुष्ट करने में सफल हुई।