उजड़ा हुआ दयार ...
उजड़ा हुआ दयार ...
उन दिनों रेडियो ही मनोरंजन का एकमात्र साधन था ..क्या छोटे और क्या बड़े ..! .सभी उसके दीवाने थे . हाँ, नौजवान पीढी को या तो क्रिकेट खेलने का या क्रिकेट कमेंट्री सुनने का नशा चढ़ा रहता था । समीर को आज भी अच्छी तरह याद है कि उन दिनों रेडियो सीलोन का साप्ताहिक कार्यक्रम बिनाका गीत माला सुनने और उस पर बहस करने प्रचलन शबाब था ।समीर सारा काम छोड़कर अपने पाकेट रेडियो को लेकर उस घर के खपरैल नुमा छत पर चढ़ जाया करता था और उस सप्ताह के सरताज गीत को सुनकर ही नीचे उतरता था ।आंधी आये या तूफ़ान ,गरमी हो या बरसात समीर ऊपर ही टंगा रहता था । जिस दिन का वाकया है उस दिन भी बुधवार ही था । रेडियो सीलोन पर उस सप्ताह का सरताज गीत अपना जादू बिखेर रहा था .." .मांगी मुहब्बत ,पाई जुदाई,दुनिया हमको रास ना आई,पहले कदम पर ठोकर खाई ..सदा आजाद रहते थे , हमें मालूम ही क्या था ,मोहब्बत क्या बला है ..कमर जलालाबादी के लिखे और .मुकेश के गाये इस दर्द भरे नगमे को सुनते हुए वह इतना तल्लीन हो गया था कि उसे नीचे से पुकार रहे पिताजी की आवाज़ सुनाई ही नहीं दी !
रेडियो बंद हुआ और जब समीर मियाँ नीचे उतरे तो उनके पिताजी फुल फ़ार्म में उसके ऊपर टूट पड़े...
" उतर आये लाट साहब ?"व्यंग्य के बाण ठीक निशाने पर पड़ा था और समीर का सारा नशा काफूर हो चला था ।
"कुछ पता भी है जनाब को कि रिजल्ट कैसा रहा है ?"उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि से घूरते हुए पूछा ।
"जी, जी पिताजी अभी तो रिजल्ट शर्मा मास्टर साहब लाये नहीं हैं । " लगभग हकलाते हकलाते समीर बोला ।.....उसने सोचा बला टली । लेकिन........
"वाह , वाह ...शर्मा जी बाहर आकर बैठे हैं जनाब । अरे , आपको शर्म आनी चाहिए कि नौवीं की पूरी क्लास में सिर्फ आप संस्कृत और अंकगणित दो दो विषयों में फेल हैं ।"
पिताजी की बात सुनकर समीर की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई ।ना चाहते हुए उसे पिताजी घसीटते हुए बाहर के ड्राइंग रूम में बैठे हुए शर्मा जी मास्टर साहब के पास हाज़िर कर दिए । शर्मा जी मास्टर बड़े ही काइयाँ किस्म के थे ।अब वे भी मेरे घर का खाया हुआ नमक अदा करने को पिल बैठे ।
"बेटा , मैं तुमसे कहता था, जो है सो ,कि ज़रा ध्यान दिया करो । बुनियाद है , बुनियाद , जो है सो ,हाई स्कूल की ।" शर्मा जी बोल उठे ।
अगर सब कुछ सामान्य होता तो समीर पहले उनके बोलने के इस्टाइल और उनके तकिया कलाम "जो है सो " पर ठठा कर हंसता लेकिन उसके पिताजी की लाल लाल आँखें उसे अभी भी घूरे जा रही थीं सो ... "जी " लगभग हकलाते हुए सूखे गले से समीर की आवाज़ निकली ही थी कि "तड़ाक तड़ाक" की ध्वनि करती पिता जी के हाथों की उँगलियों के निशाँ उसके नर्म गालों को सुर्ख कर डाले ।
उसके बाद समीर के जीवन का एक लम्बा अंतराल ...समीर के जीवन में ऐसे ही कभी खुशी कभी गम के पल आते रहे । नाइंथ के उसके सभी साथी उससे आगे निकल गए ।असल में समीर की उतनी गलती नहीं थी जितनी उसके अभिभावकों की ।उसके पितामह चाहते थे कि पोता संस्कृत अवश्य पढ़े जब कि संस्कृत उतनी आसान नहीं थी कि वह आसानी से हजम हो जाय ..उधर मैथ्स तो कम्पलसरी ही था ।जैसे तैसे उसकी स्कूली पढ़ाई बी.ए.तक पूरी हुई कि एक बार फिर समीर को उन्हीं परिस्थितियों से दो चार होना पड़ा ।पिताजी चाहते थे कि बेटा कानून की पढ़ाई करके या तो वकालत करे या जुडीशियरी में जाए और उधर समीर अपनी साहित्यिक रूचि को निखारने के लिए एम्.ए. हिंदी से करना चाह रहा था ।हिन्दी विभाग में उसने अप्लाई किया था और एडमिशन सूची में उसका नाम पहले नम्बर पर आ भी गया था ।लेकिन....
लेकिन वह दौर ही ऐसा था कि घर के बड़े बुजुर्गों का दखल बच्चों के कैरियर,घुमने - टहलने ,यारी दोस्ती सब पर कुछ ज़्यादा ही हुआ करता था ..बड़े बुज़ुर्ग की कौन कहे घर के नौकरों की भी हैसियत इतनी हुआ करती थी कि अगर उन्होंने चुगली कर दी तो आपकी पिटाई तय हुआ करती थी । एक दिन बिनोद नामक नौकर ने भी तो समीर की जैम कर पिटाई करवा डाली थी यह कहकर कि आज तो बाबू सड़क पर फेंकी हुई बीडी उठा कर पी रहे थे ....
खैर ,उम्र के बाइसवें साल में ही समीर ने बावजूद कानून की डिग्री लेकर अपने साहित्यिक शौक और हुनर के बल पर सरकारी प्रिन्ट मीडिया समूह की नौकरी में चला गया था ।आज वह देश के गिने चुने मीडियाकर्मी के रूप में जाना पहचाना जाने लगा है ।उसकी प्रतिभा के नूर से उसका परिवार गौरवान्वित है ।यह अलग बात है कि संस्कृत की बाध्यता डाल कर और मैथ्स के उलझे मकडजाल में घुमाकर फंसानेवाले उसके पितामह समीर की यह सफलता देखने के लिए अब जीवित नहीं थे ।
लेकिन ..लेकिन उस इलाहाबादी खपरैल वाले घर और वहां बिताये बचपन , संकरी गली में खेले जाने वाले क्रिकेट , गुल्ली-डंडा ,कंचा या गोलियों की रासलीलाओं को एक बार फिर से समीर को जीने का मन मरता है..और .. और वहीं से तो उपजी थी तीखे नयन नक्श वाली धीरा और समीर के बचपन की दोस्ती ...उस दोस्ती का क्या हुआ ....जानना चाहेंगे आप ?..और ..घर भर को पढ़ाने वाले शर्मा जी मास्टर अब कहाँ और किस हाल में हैं आप जानना नहीं चाहेंगे ?