उजड़ा हुआ दयार -श्रृंखला (24)
उजड़ा हुआ दयार -श्रृंखला (24)
सानफ्रांसिस्को से दिल्ली की दूरी लगभग 15 घन्टे 45 मिनट की होती है और उस समय 7 नान स्टॉप फ्लाइटें दिल्ली के लिए उड़ान भरने लगी थीं। लगभग दो लाख सोलह हजार इंडियन करेंसी में उन दिनों एक टिकट का मूल्य था। पुष्पा सहित समीर की टीम के सभी मेंबर एयर इंडिया के बी 777 विमान में सवार हो चुके थे।समीर मन बना लिया था कि जो भी होगा घर की या ऑफिस की दोनों जगह वह चुनौतियों से दो दो हाथ करेगा।
लगभग अनुमानित समय से दो घंटे की देरी से विमान इन्दिरा गांधी इंटर नॅशनल एयरपोर्ट पर लैंड कर गया।ऑफिस से गाड़ियां आई हुई थीं और सभी अपने अपने गंतव्य के लिए रवाना हो गए। विदा लेते समय सभी भावुक थे क्योंकि इतने दिनों का उनका साथ जो था ! हाँ, पुष्पा ने तो समीर को फेयरवेल किस देकर विदा किया।
इतने दिनों का छोड़ा हुआ घर कबाडखाना बन गया था।सामान एक किनारे रखकर समीर ने घर की आवश्यक सफाई की और डिनर के लिए जोमैटो को आर्डर भेज दिया।अगली सुबह ही मोबाइल ने उसे जगा दिया।उधर मीरा थी।
"समीर,ठीक रहा तुम्हारा अमेरिका का प्रवास ?"मीरा बोल रही थी।
"हाँ,ठीक ही रहा।"समीर थोड़ा मन्द होकर बोला और आगे यह भी जोड़ा :"मीरा , एक ज़रूरी बात यह बतानी है कि कोरोना के कारण हुए लाक डाउन में मेरी कम्पनी ने बड़ी जबरदस्त छंटनी करनी शुरू कर दी है ...और लगता है कि अपनी भी नौकरी पर बन आयेगी।ऐसे में प्लीज तुम्हारा साथ चाहिए..जल्द से जल्द दिल्ली आ सकोगी क्या ? "समीर अपनी बार ख़त्म करके मीरा की पर्तिक्रिया जानने को उत्सुक हो बैठा।
'नही यार, असल में मैंने बी.एड,का रिजल्ट आते ही टीचिंग के लिए अप्लाई कर दिया था। सोचा था कि घर पर बैठे - बैठे बोर होने से अच्छा है कि कुछ कर ही लिया जाय। सो नो चांस डियर...परसों ही तो मुझे भोपाल निकलना है इंटरव्यू के लिए !"
समीर ने दुखी होते हुए .बात समाप्त कर दी।
समीर और मीरा की ज़िंदगी के दाम्पत्य जीवन का यह खतरनाक मोड़ है और दोनों ही इस खतरे से अवगत भी हैं। क्या वे इन खतरों को टाल पायेंगे ?क्या उनकी गृहस्थी पर लगा यह ग्रहण समाप्त हो पायेगा ...?फिलहाल तो यह यक्ष प्रश्न ही बन कर खड़ा है।
यक्ष प्रश्न..?
हां, यक्ष के प्रश्नों का उत्तर देते हुए युधिष्ठिर का महाभारत में एक प्रसंग है कि प्यासे पाण्डवों को पानी पीने से रोकते हुए यक्ष ने पहले अपने प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी थी।यक्ष प्रश्न एक हिन्दी कहावत भी है। यह कहावत किसी ऐसी समस्या या परेशानी के सन्दर्भ में प्रयुक्त होती है जिसका अभी तक कोई समाधान नहीं निकाला गया है या समस्या जस-की-तस बनी हुई है।
यक्ष प्रश्न नामक यह कहावत महाभारत में यक्ष द्वारा पाण्डवों से पूछे गए प्रश्नों से निकली। जब पाण्डव अपने वनवास के दिनों में वन-वन भटक रहे थे तब एक दिन वे लोग जल की खोज कर रहे थे। युधिष्ठिर ने सबसे पहले सहदेव को भेजा। वह एक सरोवर के निकट पहुँचा और जैसे ही जल पीने के लिए झुका उसे एक वाणी सुनाई दी। वह वाणी एक यक्ष की थी जो अपने प्रश्नों का उत्तर चाहता था। सहदेव ने वाणी को अनसुना कर पानी पी लिया और मारा गया।
इसके बाद अन्य पाण्डव भाई भी आए और काल के गाल में समा गए। तब अन्त में धर्मराज युधिष्ठिर आए और यक्ष के प्रश्नों के सही-सही उत्तर दिए और अपने भाईयों को पुनः जीवित पाया। इसलिए आधुनिक युग में भी जब कोई समस्या होती है और उसका किसी के पास समाधान नहीं होता तो उसे यक्ष-प्रश्न की संज्ञा दे दी जाती है|
क्या समीर इस चुनौती पूर्ण यक्ष प्रश्न का उत्तर दे पायेगा?
(क्रमशः)