Sheela Sharma

Children Stories

1.0  

Sheela Sharma

Children Stories

उगता अंकुर

उगता अंकुर

2 mins
281


समय के साथ साथ अधिकतम शहर गगनचुंबी इमारतों के कारण ढके छिपे नजर आते हैं। उनमें रहने वालों का व्यस्त जीवन अपने आप में ही बीतता है। उनके आस पास कौन रहता है कौन नहीं. इसकी उन्हें ख़बर तक नहीं होती। हां तीज त्यौहार लोग ऊपरी तौर पर आपसी पहचान बना लेते हैं. फिर वैसे के वैसे. 

 पिछले साल जब होली का पर्व आया तो सुबह से ही बड़े बुजुर्ग महिलाएं बच्चे रंग बिरंगे रंगों में घुल मिल रहे थे. माहौल में मौज मस्ती थी साथ ही डीजे पर थिरकन' तभी शोरगुल हुआ पता चला ,एक बच्चा मोंटू अपनी बालकनी से नीचे गिर गया था। खून भी काफी बह रहा था और बेहोश भी हो गया था . उसे देखकर प्राय सभी जड़ से हो गए। तभी आवाज आई "एंबुलेंस को बुला लिया है आती ही होगी"। सुनते ही होड़ सी लग गई साथ में जाने वालों की. यहां पर तो समय काटे नहीं कटेगा। वहां कुछ दवा वगैरा लगी तो दौड़कर लेकर तो आएंगे वैसे भी छुट्टी का दिन है कोई जरूरी नहीं कि सभी मेडिकल शॉप खुली हो. बाकी को समझा-बुझाकर कुछ लोग साथ में चले गए। बचे हुए वहीं फर्श पर बैठ गए। भीगे कपड़े हैं या नहीं इसकी उन्हें चिंता नहीं थी ,चिंता थी तो सिर्फ बच्चे की 

 दो-तीन घंटे बाद जब खबर मिली कि हालात काबू में है। तब कहीं जाकर सबके चेहरे पर मुस्कान आई। अब उन्हें महसूस हुआ कि उनके आसपास भी दूसरे लोग बैठे हुए थे. मोंटू वापस घर आएगा तब होली मनाएंगे. ये कह कर सभी तामझाम हटवा दिए। भोजन भी बाहर आश्रम में भेज दिया गया। 

दस दिन बाद मुंशी मेंशन में होली का माहौल देखने लायक था। आस पड़ोस वाले भी चकित थे। त्यौहार जाने के बाद रंग खेलता देखकर। मोंटू के माता-पिता के धन्यवाद से जुड़े हाथ लोगों ने अपने हाथों में ले लिए। वह सब आपसी लगाव , भाईचारा देख कर मन झूम उठा। "" वास्तव में यही तो है ईश्वर की अनमोल रचना "" हां वक्त ने , हालात ने कुछ इंसानों की फितरत में बदलाव किया है। पर अच्छी सोच बुरी सोच पर एक न एक दिन जरूर हावी होगी। तब सब ठीक होगा। भले ही थोड़ा वक्त लगे। 

मन में यह विचारधारा चल ही रही थी कि तभी कंपाउंड में लगे आम के पेड़ पर नजर गई। डाल पर बैठी चिड़िया भी फुनगी हिला हिला कर हां में हां कह रही थी।


Rate this content
Log in