Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Others

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

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“ ट्रैनिंग सेंटर का लंगर”

“ ट्रैनिंग सेंटर का लंगर”

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चौकिए मत ,लंगर प्रायः गुरुद्वारा में होते हैं ! यह एक शुद्ध शाकाहारी पाकशाला होता है जहाँ हरेक मजहब और हरेक जाति के लोग पके हुए खाने को ग्रहण करते हैं ! शायद इसी के अनुकरण के पश्चात आर्मी के प्रशिक्षण केंद्रों में अनेक लंगरों का नामांकन हुआ होगा ! 2 बेसिक मिलिटरी ट्रैनिंग बटालियन, आर्मी मेडिकल कॉर्पस में तीन कॉम्पनियाँ थीं ! एक E कॉम्पनी ,दूसरी F कॉम्पनी और तीसरी G कॉम्पनी हुआ करती थी ! E कॉम्पनी के साथ RR प्लाटून हुआ करता था! तमाम नये रंगरूटों का लखनऊ केंट के RR प्लाटून में रिपोर्ट करना पड़ता था ! हरेक कॉम्पनी में एक -एक लंगर हुआ करता था ! E कंपनी के लंगर में RR प्लाटून का भी खाना बनता था!18 अगस्त 1972 को शाम 5 बजे लखनऊ चरबाग रेल्वे स्टेशन से ताँगा मुझे RR प्लाटून पहुँचा दिया ! मत पूँछिए , सारे के सारे नये रंगरूट बाहर आ गए ! सबके बाल फौजी कट कटे हुए थे ! सब मलेसिया नेकर हाफ पेंट ,मेलेसिया सर्ट बाजू फोल्ड और ब्रॉउन PT शू ऊलेंन मौजा पहने निकले ! सब एक जैसे लग रहे थे !“ अरे आओ देखो , एक नया मेहमान आ गया “ सब ने चिल्लाया !और मेरे समान को उठाकर अंदर ले गए !प्लाटून कॉमाण्डर नायक फ़जलू आ गए ! उन्होंने कहा ,—“ समान छोड़ो ,पहले इसे लंगर ले जाओ और खाना खिलाओ !”लंगर मेरे लिए यह पहला शब्द था ! आज पता लगा हमलोगों को लंगर में खाना मिलेगा !मेरे पास प्लेट और मग नहीं थे ! किसी ने मुझे अपना प्लेट और मग दिया ! सफेद प्लेट और सफेद मग ! लंगर 100 कदम दूर पर था ! एक तरफ से लंबी कतारें लगी थीं ! ऊँचे- ऊँचे थड़े पर बड़े -बड़े पतीले रखे थे ! सबसे पहला पतीला में चावल था ,दूसरे में रोटी रखी थीं ,तीसरे में सब्जी ,चौथे में दाल ,पाँचमे में शाकाहारी के लिए दूध और अंत में दूर मीट का पतीला था ! हरेक पतीले पर एक- एक रंगरूट तैनात था ! बहुत लंबी लाइन थी ! मुझे सब घूर रहे थे ! क्योंकि मैं अपने सिवल ड्रेस में ही था और सबके सब यूनिफॉर्म में !मेरी बारी आई ! चावल बहुत कम मिला पर रोटी प्रतिबंध मुक्त थी ! रोटी को यहाँ चपाती कहते थे ! रोटी अच्छी तरह पकी नहीं थीं ! सब्जी लिया और मग में मीट ! एक ही प्लेट में सारा खाना ? दाल मैंने नहीं ली क्योंकि मीट के साथ दाल का कोई तालमेल ही नहीं होता ! रोटी और दाल में कोई प्रतिबंध नहीं होता था पर चावल ,सब्जी और मीट जो एक बार मिल गया वह मिल गया !खाना खाने के बाद बड़ी लंबी चौड़ी लाइन का फिर सामना करना पड़ा ! यह लाइन अपने -अपने प्लेट और मग को साफ करना ! उस समय एक बड़ी टंकी में दो नलके लगे थे ! एक नलका खराब था और दूसरा ठीक !हमलोगों में चर्चा का विषय हो गया !“ भाई ,इस तरह का लंगर ना कभी देखा था और ना सुना था ”रोल कॉल की सीटी बजी ! लंबे लेक्चर के बाद प्लाटून कनिष्ठ पदाधिकारी जोर से सब रंगरूटों से पूछा ,—-“सबने खाना खाया ?”सबों ने जोर से आवाज लगाई ,—“ एस सर ”“ खाना कैसा था ?”“ बहुत अच्छा सर ”रोल कॉल समाप्त ! 1 बेसिक मिलिटरी ट्रैनिंग बटालियन और हमारे 2 बेसिक मिलिटरी टैनिंग बटालियन के बीच में लालता प्रसाद की सिवल वेट कैन्टीन थी ! रोल कॉल के बाद बहुत से रंगरूट वहाँ जाते और दूध ,गाजर का हलवा ,पलंग तोड़ और कुछ ध्रूमपान करते थे !लंगर संतरी ,लंगर सहायक ,सब्जी कटिंग ,मीट कटिंग ,राशन वर्किंग के कार्यों को हरेक रंगरूट प्रथिमकता देता था ! इन ड्यूटी का इंतजार सबको रहता था ! पर्याप्त भोजन बिना प्रतिबंध के मिल जाते थे ! खाना बाँटने के लिए सब तैयार रहते थे !सुबह 3 बजे चाय की घंटी बजती थी ! हरेक सेक्शन से एक रंगरूट लंगर से चाय लाकर अपने सेक्शन के साथियों को पिलाता था ! PT के बाद सब Breakfast लाइन लगाकर लंगर में करते थे ! फटाफट हाथ में दो पुड़ियाँ मिलती थीं और एक मग चाय ! किसी दिन सब्जी के रूप में चने की सूखी दाल मिल जाया करती थी !फिर दिन भर कठोर प्रशिक्षण के बाद 1 बजे दिन में भोजन की लंबी कतारें !कभी -कभी मैं पूंछ बैठता था ,—-“ आखिर कब तक शरणार्थियों के तरह हमलोग खाते रहेंगे ? ये लंबी -लंबी कतारें को कब तक हम झेलेंगे ?”जवाब मिलता था ,—-“ यह सब ट्रैनिंग का हिस्सा है मेरे दोस्त !”3 बजे दोपहर को फिर चाय ! जोर की सीटी बजती थी और सब अपने- अपने मग लेकर बाहर आ जाते थे और वहीं अपने चाय पीते थे ! चाय के बाद वर्किंग शुरू ! 5 बजे तक वर्किंग और फिर स्नान करके 6 बजे लंगर में पहुँचने लगते थे !हरेक रविवार को बड़ा खाना ! उस दिन रोटी नहीं पुड़ियाँ बनती थीं ! चावल नहीं पीला चावल बनता था ! रायता ,कड़ी ,सलाद ,फल और पापड़ भी रहता था ! VIP निरीक्षण के समय भी खाना लंगरों में अच्छा बनता था ! पर्व -त्यौहार और CORPS DAY में खाने का जायका उत्कृष्ट ही रहता था !दिसम्बर 1974 को आर्मी मेडिकल कॉर्पस ट्रैनिंग को छोड़ा पर लंगर ने मेरा पीछा तभी छोड़ा जब 1977 से परिवार साथ रखने लगा ! 1977 से 2002 तक लंगर का सदस्य नहीं रहा पाया ! लेकिन 1992 के बाद भोजन टेस्टिंग के लिए अवश्य लंगर में जाना पड़ता था ! यह मेरी ड्यूटी भी थी और मैं पुरानी यादों को अपने मानस क्षितिज पर सहेज कर रखना चाहता था ताकि अपने अनुभव को आपसे कभी साझा कर पाऊं ”


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