सूखे आँसू
सूखे आँसू
श्रीकला की शादी बडे धूमधाम से हुई। सब बहुत खुश थे । श्रीकला भी अपने मनपसंद वर को पतिके रुप में पाकर बहुत खुश थी । सारे मेहमान चले गये । कुछ करीब के रिश्तेदार ही विदाई की घड़ी में रुके थे सबकी आँखें आँसू से भर आयी। कुछ दिनों के लिये श्रीकला की बहन उसके साथ थी , फिर भी मन भर आया वो रोने लगी । सारे रिश्तेदार रोने लगे । माँ,छोटे भाई सब रोने लगे ,पर एक ही ऐसा इंसान था जो एकदम शांत था । वो था श्रीमान गजेंद्र मेनन । इसे देखकर सबको आश्चर्य हुआ कि वो बेटी की विदाई पर बिना रोये कैसे रह पाया ? और तो और बेटी को विदा करते समय उसकी पलकों में नमी भी नहीं । सब आपस में खुसुर-पुसुर कर रहे थे । ये खुसुर-पुसुर श्रीकला के कानों तक पहुंच गई । पर ये कोई नहीं जानता था कि मर्द नहीं रोते ।
श्रीकला ने भी देखा कि उसके पापा ने उन दोनों को मुस्कुराते हुए आशीष दिया और कार तक लेकर गये । उसे अपने पापा बहुत मानसिक रुप से संतुलित लग रहे थे । न उनकी आवाज में उसे गम की खनक सुनाई और न आँखों में नमी की झलक दिखाई दी । उसे ये सोचकर हैरानी हुई कि उसके बिछड़ने का एहसास भी नहीं दिखाया । उसके अनुसार सचमुच न सही दिखावे के लिये ही सही, दो आँसू नजर आते । वो नाराज होकर चली गई । उसे लगा इतनी जल्दी पापा ने उसे पराया मान लिया ।
दूसरे दिन उसके पापा अपने छोटे भाई के साथ नवविवाहित जोडे़ को पग फेरे की रस्म के लिये न्योता देने सुबह जल्दी ही निकल पडे़ । तीन घंटे के सफर के बाद ग्यारह बजे तक वो दोनों बेटी के ससुराल पहुँचे । स्वागत सत्कार के बाद बातें हुई । भोजन और कुछ देर आराम के बाद शाम को वो दोनों दुल्हा–दुल्हन पग फेरे के लिये जाने के लिये तैयार हो गये । सब साथ में निकले । श्रीकला की माँ देविका ने अपनी बेटी को फोन करके बताना चाहा । तो उसने नाराजगी में फोन ही उठाया नहीं । एक दो बार कोशिश की भी पर बाद में फोन रखकर वो पग फेरे की रस्म की तैयारियों में लग गई। पर देविका गजेंद्र को अच्छी तरह जानती थी । अपने पति के न रोने का मतलब यह नहीं था कि उनको अपनी बेटी से बिछड़ने का गम नहीं था । वो दिखावा नहीं करना चाहते थे । इस बातको वो जानती थी और उसे इस बात का बुरा भी नहीं लगा । पर बेटी नहीं जानती थी उसे बुरा लग गया ।
यहाँ अपने शहर पहुँचते –पहुँचते रात हो गई । घर में बहुत चहल-पहल थी ।बडे धूमधाम से दुल्हा-दुल्हन का स्वागत हुआ । स्वागत सत्कार से श्रीकला और उसका दूल्हा भी प्रभावित हो गया। घर पहुँचे सबने उनको घेर लिया। दोनों की खूब खातीरदारी भी हुई।
रात के भोजनके बाद दोनों माँ बेटी घर के पीछे वाले आंगन में बैठ कर बतियाने लगीं। तब देविका ने उसे समझाया,"मैं जानती हूं तू अपने पापा से इसलिये नाराज हैं क्योंकि वो तेरी विदाई पर नहीं रोये ,पर तू नहीं जानती तुम्हारे जानेके बाद अपने कमरे बंद होकर इतना रोये कि कोई उतना नहीं रोया होगा । उनकी शुरु से आदत रही कि वे अपने दुख-दर्दको कभी किसी को न ही बताते और जताते । कितने ही दुख हो ,तकलीफ हो सह जाते हैं, हजम कर लेते हैं पर मजाल है किसीको पता भी चले । हमेशा मुस्कुराते रहते हैं । हमें ऐसा लगता है कि कैसा है ये इंसान बेटी की विदाई में भी नहीं रोया । पर कोई ये नहीं जानता कि उन्होने अपने जीवन में कितने आँसू बहाये होंगे । जब वो छोटे थे गरीबी और माता पिता की बीमारी ने उन्हें रुलाया,भाई बहन की भूखने कितना उन्हें रुलाया।"
"उन्होने अपने आँसू पोछकर दिन में काम करके, पैसे कमाकर अपने भाई-बहन और माता पिता गुजारा कर लेते और रात में मेहनत करके पढ़ाई की । हालातों से लड़कर सबकी जिम्मेदारी निभाई । माता पिता का इलाज भी करवाया ,पर वो नहीं रहे । बड़े होने पर भाई बहनों की बेरुखी ने उनको कितना रुलाया ये कोई नहीं जानता । उनके तो आँसू भी सूख गये बेटा, और कितना रोयेंगे और कितने आँसू बहायेंगे । वो अगर मुस्कुराते हैं तो,हम दोनों की वजह से ही मुस्कुराते हैं वरना वो तो आज भी रोते ही रहते । अगर हम दोनों उनके जीवन में नहीं होते।"
ये सब जानकर श्रीकला की गलतफहमी दूर हो गई। उसने दौड़कर पापा से माफी मांगी । दूसरे दिन पग फेरे की रस्मके बाद खुशी से अपने इस घर की मीठी यादों के साथ ससुराल चली गई ।
