सुशील की उड़ान
सुशील की उड़ान
सुशील बिहार के एक छोटे से गाँव से अपने पिता जी के साथ दिल्ली जैसे बड़े शहर में सुनहरे सपने लेकर आया। पिता जी फ़र्श घिसने की मशीन चलाकर अपनी आजीविका कमाते थे। दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में सुशील का दाखिला करा दिया गया। बच्चा स्कूल में पढ़ने के साथ-साथ अपने पिता जी के साथ भोजन बनाना, कपड़े धोना अर्थात घर का सभी काम करता। स्कूल में प्रतिदिन जाना व अपने साथ के बच्चों से बातें करना, उनके साथ खेलना सुशील को बहुत भाता।
सुशील की समस्या थी कि उसे हिंदी बोलनी व लिखनी बिल्कुल नहीं आती थी। सुशील हिंदी वर्णमाला के अक्षरों को न तो समझ ही पाता और न ही बोल पाता। घर के मकान मालिक के टेलिविज़न पर चित्रों की कहानी देखना उसे अच्छा लगता। स्कूल में बच्चे उसकी भाषा नहीं समझ पाते। वह उदास रहने लगा। धीरे-धीरे टेलीविजन पर चित्रों की कहानियाँ देखना ही उसका मनोरंजन का एकमात्र सहारा बन गया। देर रात तक वह टेलीविजन देखने लगा।
विद्यालय में अब सुशील उदास मन से नींद भरी आँखों से बैंच पर बैठ जाता। कक्षा में वह कुछ समझ नहीं पाता और थोड़ी ही देर में गहरी नींद में सो जाता। अध्यापिका अपने छात्र को लेकर अत्यंत चिंतित हुई। बच्चे की भाषा और लिखाई किसी को समझ नहीं आती। स्कूल में दूसरे बच्चे उसकी भाषा का मजाक उड़ाते। अब सुशील स्कूल ही नहीं आना चाहता था।
समस्या समाधान हेतु अध्यापिका ने पिता जी को स्कूल में बुलाया और पूरी स्थिति को समझने का प्रयत्न किया। इस समय वह दूसरे बच्चों की तुलना में बहुत पीछे था। एक अक्षर पढ़ने में भी असमर्थ था। उसका स्कूल आने का बिल्कुल मन नहीं करता था। अध्यापिका ने सुशील को चित्रों के माध्यम से पढ़ाना सिखाया गया। धीरे-धीरे वह चित्रों की भाषा को समझने व पहचानने लगा। हिंदी के शब्दों को जोड़कर व तोड़कर बोलना सीखा। फिर पढ़ना व लिखना। बहुत कठिनाई से सुशील शब्दों को बोलता और फिर लिखता। सीखते-सीखते वह चतुर्थ कक्षा तक पहुँच गया। हिंदी की टूटी-फूटी भाषा में बोलना व लिखना सुशील को आने लगा। उसके मित्र भी अब उसकी मदद करते। सुशील प्रतिदिन स्कूल आता और अनेकों प्रश्न अपनी अध्यापिका से करता रहता। प्रश्नों के उत्तर पाकर वह एक फूल की भांति खिल उठता। वह दिल्ली में अपनी माँ के बिना रहता था। अपनी अध्यापिका में वह अपनी माँ को ढूँढता। अध्यापिका के स्नेहपूर्ण व्यवहार से सुशील का अब प्रत्येक विषय में मन लगने लगा। अब वह दिन आया जब सुशील ने पाँचवीं कक्षा में मेधावी परीक्षा पास करने में सफलता हासिल की।
आज शब्दों को कागज़ पर उकेर कर सुशील की उड़ान को मानो पंख मिल गए हों।
