सुनीता की दादी ....

सुनीता की दादी ....

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आखरी दो दिन और थे सुनीता को लंदन जाने के लिए, और पूरा घर लगा था उसकी तैयारी में और सुनीता की दादी को ये कतई मंज़ूर नहीं था सो उनको वैसे भी पहले से किसी ने बताया नहीं था। आज ही मालूम हुआ और उनकी सनक गई "बेटी को इतनी दूर भेजते हो? ऐसी कैसी पढ़ाई जो यहाँ ना हो सके? अकेली लड़की को पराये देश भेजते कुछ हो गया तो ? नहीं सुनीता नहीं जाएगी।" सुबह से कुछ खाया भी नहीं। सुनीता उनके लिए सबसे प्यारी बेटी थी और अपने पुराने ख़यालात की वजह से विदेश की पढ़ाई तो बहुत दूर की बात है, यहाँ पे कॉलेज जाते वक़्त भी सुनीता को ढेर सारी बातें सुनाती, ये करना वो मत करना ऐसा। 


सुनीता, कंप्यूटर इंजीनिरिंग की पहले दर्जे की स्टूडेंट। पढ़ाई में काफी अच्छा कर रही थी, अब मास्टर के लिए लंदन कॉलेज में एडमिशन हुआ था

सुबह से बाहर थी। घर में दादी का ड्रामा चल रहा है ये पता नहीं था फ़ोन साइलेंट मोड़ पे था पापा ने फ़ोन किया था मगर व्यर्थ, जब दोपहर के बाद काम ख़तम करके उसने फ़ोन चेक  किया तो पापा के 5 मिस्ड कॉल थे। घबरा गई और जल्दी से पापा से बात हुई और घर आने को बोला, रास्ते में यही सोचती रही अगर दादी को कन्विंस नहीं किया तो लंदन केंसल, फिर पापा को फ़ोन पे कुछ बताया। फिर पेन से हाथ पे कुछ निशाँ बनाये और पोछ दिए इससे लाल घाव जैसा चमड़ी का रंग हो गया, सुनीता अपना हाथ मलते हुए आईघर में पापा को पता था सो वो मुस्कुराये, माँ ने देखा तो वो चिल्लाई 

"ये क्या हुआ ?? चोट कैसे लगी ?"

ये सुन के दादी भी लकड़ी के सहारे बाहर आ गई 

"क्या हुआ मेरी गुड़िया को?"

सुनीता थोड़ा कराही और बोली "दादी देखो ना ये हमारे सिटी की बड़ी कॉलेज है ना जिसे अब यूनिवर्सिटी बोलते है वहां कुछ काम के लिए गई थी तब कुछ स्टूडेंट ने कहा की क्यूँ लंदन जा रही हो ? यही पे हमारे साथ मास्टर कर लो ना !! कहकर मेरा हाथ पकड़ लिया और जोर करने लगे। मैं भी कम नहीं थी बस उनसे छूटा के आई और बोलके भी आई के "मुझे यहाँ पढ़ने का कोई शौक नहीं है, कभी नहीं आउंगी "तभी वहां एक बुज़ुर्ग आ गए और मैं वहां से निकल आई, पता है उस बुज़ुर्ग ने क्या कहा दादी?? 

"बेटी ये जगह तेरे लिए ठीक नहीं है वापस मत आना अब बताओ दादी वहां में कैसे पढ़ने जाऊँ?"

दादी,बोली "कीड़े पड़े उस कॉलेज में बस अब तू वहां नहीं जाएगी सुनीता दादी को लिपट गई और पीछे खड़े पापा को आँखों से इशारा किया। पापा की हँसी रुक नहीं रही थी सुनीता ने दादी को कन्विंस जो किया था, बाद में माँ और भैया को बताया तो वो भी हँस पड़े 

जब सुनीता एयरपोर्ट के लिए निकली तब दादी के होठों पे स्माइल थी।



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