Kamlesh Ahuja

Children Stories

5.0  

Kamlesh Ahuja

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सुबह का भुला

सुबह का भुला

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राजेश अपने स्कूल का मेधावी क्षात्र था।घरवालों और सभी स्कूल के शिक्षकों को उससे बहुत उम्मीदें थीं।राजेश भी बहुत मेहनत करता उसे इंजीनियर बनना था।

राजेश के पिता सरकारी कर्मचारी थे,उनकी तनख़्वाह से बड़ी मुश्किल से परिवार का गुजारा हो पाता था।दो बच्चे,बूढ़े माता पिता व स्वयं पति पत्नी मिलाकर छह सदस्य थे परिवार में पर राजेश के पिता ने बच्चों की पढ़ाई लिखाई में कोई कमी नहीं रखी थी।इसके लिए चाहे उन्हें ओवरटाइम ही क्यों न करना पड़ता था।

१०वीं कक्षा तक सब ठीक चल रहा था,पर ११वीं कक्षा में आते ही अचानक राजेश की दोस्ती रईस माँ बाप के कुछ बिगड़े हुए लड़कों के साथ हो गई,जिनका पढ़ाई लिखाई से दूर दूर तक वास्ता न था।राजेश को वो एक दो बार स्कूल से बंक कराकर सिनेमा देखने ले गए। उसे उनका साथ अच्छा लगने लगा।उनके साथ रहकर धीरे धीरे सिगरेट पीना भी सीख गया।क्लास टीचर राजेश के बदले स्वरूप को देखकर बहुत चिंतित थी,उसका स्कूल न आना और पढ़ाई में भी रुचि न लेना उनको अखरने लगा था।वह नहीं चाहती थीं,कि उनके स्कूल का होनहार छात्र गलत रास्ते पर चला जाए।एक दिन उन्होंने राजेश को अपने रूम में बुलाया

राजेश डरते हुए आया और बोला-"में आई कम इन टीचर"

"यस कम इन"

टीचर के कहने पर वह अंदर आ गया।

"बैठो राजेश,आज तुम से बहुत जरूरी बातें करनी है"

राजेश चुपचाप टीचर के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया

"राजेश मैंने सुना है,आजकल तुम आवारा लड़कों के साथ स्कूल से भागकर सिनेमा देखने जाते हो और सिगरेट भी पीना शुरू कर दिया है।हम सबको तुमसे कितनी उम्मीदें थीं, कि आगे चलकर तुम स्कूल का व अपने माता पिता का नाम रोशन करोगे और तुम हो कि पढ़ाई लिखाई छोड़कर गलत रास्ते पर चल पड़े हो।कभी सोचा है,तुम्हारे पिता तुम्हें पढ़ाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं और तुम उनकी कमाई सिगरेटों में फूँक रहे हो।क्या हो गया है तुम्हें? हम तो सबको तुम्हारा उदाहरण देते थे।जिनके साथ तुमने दोस्ती कर ली है,वह तो पैसे वालों के बच्चे हैं।नहीं भी पढ़ेंगे तो उनका गुजारा हो जाएगा पर तुम्हारा क्या होगा सोचा है"

टीचर एक साँस में सब बोल गई।पहले तो राजेश सर झुकाकर सब सुनता रहा फिर फफक-फफक कर रोने लगा-"मेडम मुझे माफ करदो, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई।मैंने आप सबका बहुत दिल दुखाया है।मैं प्रॉमिस करता हूं,अब आपको कभी शिकायत का मौका नहीं दूँगा"

"शाबाश बेटा मुझे तुमसे यही उम्मीद थी।वैसे भी कहते हैं न, सुबह का भुला शाम को घर आ जाए तो उसे भुला नहीं कहते" कहकर टीचर ने राजेश को गले लगा लिया

राजेश ने जो कहा वह कर के दिखाया।उसने १२वीं बोर्ड की परीक्षा में टॉप किया और फिर इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेकर आगे की पढ़ाई की।आज वह एक सफल इंजीनियर है और बड़ी कंपनी में कार्यरत है।सारा परिवार उसपर गर्व करता है।



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