संगम

संगम

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राजी जैसे ही ऑफ़िस से लौटी,घर मे अम्माँ ने बड़बड़ाना शुरु किया"कैसी नौकरी है तुम्हारी ।रोज रात के आठ बज जाते है।मेरा भी बुढ़ापा है घर देखूँ तुम्हारी बिटिया संभालू ।यहां बहू के ताने अलग सुनो ।अरे बिटिया गुस्सा छोड़ो और अपने घर वापिस लौट जाओ"

राजी को आदत हो गई थी ये सब सुनने की।अपनी आठ माह की बिटिया को गोद मे लिया और अपने कमरे मे आ गई ।अम्माँ भी बिचारी क्या करे भाई के बच्चो को पाला अब वो आ गई ।

इस कमरे मे उसे बहुत चैन मिलता है।शादी से पहिले जैसा छोड़ कर गई थी वैसा ही है।अम्माँ ही इसकी साफ सफाई करती हैं और रात मे यहीं सोती।आजकल बैठक के तख्त पर सो जाती है।

अम्माँ काम निपटा कर मेरे कमरे मे चाय लेकर आईं ।मेरे पास बैठ कर गुड़िया के सिर पर हाथ फेरते हुएबोली"मुन्नी हम तुमसे इतना बोलती है,हमे अच्छा नही लगता है,पर क्या करे बहू बार बार पूछती है दीदी अपने घर कब जायेगीं।मायके मे पड़ी क्या वो अच्छी लगती है।यहाँ के भी तो खर्चे है,"कहते कहते अम्माँ रोने लगी।पल्ले से आँसू पोछने लगी।

"अम्माँ वो घर है ,सास दिन रात मुझे कोसती रहती,लड़की पैदा की है।वैसे घर मे चार चार लड़किया बैठी है।अगर उनकी चार बेटियाँ है तो मेरा क्या कसूर,।गुडिया को कोई प्यार नही करता,यहाँ तक की मनोज भी इसे गोद नही लेते।कुसुम ही इसे देखती है दोपहर मे स्कूल से आने के बाद ।,जब मै ऑफ़िस जा पाती हूँ "

"हाय राम,कुसुम ,तेरी ननद? उसकी अभी उमर ही क्या है बारह साल की होगी ।तेरे पीछे कैसे संभालती होगी गुड़िया "

"नही अम्माँ,वो इसे बहुत प्यार करती है,दूध देने,खाने के अलावा ,जरुरत पड़ने पर इसकी शू शू,पौटी भी साफ कर देती है।पता नही पिछले जन्म मे उससे मेरा क्या रिश्ता था"

"भगवान उसे सदा सुखी रखे ।पर तू अपने घर चली जा।दामाद जी से बात कर बेटा ।"

"अम्माँ अभी हफ्ता ही तो हुआ है मुझे यहाँ आये हुए,तुम सब मुझ्से परेशान हो गये"

"पगली,अपने बच्चो से कोई परेशान होता है।पर अब इस घर पर तेरे पापा के जाने के बाद मेरा अधिकार नही रहा।मै खुद बहू बेटे पर आश्रित हूं मेरी बच्ची।उस घर मे तुझे और गुडिया को प्यार करने वाला एक फरिश्ता तो है"

"अम्माँ जी दामाद बाबू आये है"बहू ने आकर कहा।अम्माँ चौंक गई लगभग दौड़ती सी बैठक मे गई उनके पीछे राजी भी गुड़िया को गोद मे लेकर पहुंच गई ।अशगुन की आशंका से दोनो का मन घबरा रहा था।

मनोज अम्माँ के पैर छूने आगे बढे।"न न लल्ला पैर न छुओ हमारे,कन्यादान किया है हमने"अम्माँ बोली,पर मन अब भी आशंकित

था।मनोज ने गुड़िया को अपनी गोद मे ले लिया बोला"राजी घर चलो कुसुम बहुत बीमार है।गुड़िया को देखने की रट लगाए है।मां कह रही थी तुम्हे और गुड़िया को लेकर जल्दी घर पहुंचू"

"ऐसे कैसे लाला जी,बिना खाना खिलाए आपको और दीदी को कैसे जाने देंगें"

"भाभी एक ही तो शहर मे हम सभी रहते है।खाना फिर कभी खा लेंगें।आज जाने दें,कुसुम अपनी भाभी और गुड़िया से मिलने को बेचैन है।"

अम्माँ के आँखो से आँसू बह रहे थे।बिटिया के जाने का दुख भी था और खुशी भी।

मिला जुला संगम थे उनके ये दुख और खुशी के आँसू।



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