Charumati Ramdas

Children Stories

4  

Charumati Ramdas

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सिर्योझा - 4

सिर्योझा - 4

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लेखक: वेरा पनोवा

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

 

आँगन में लोहे के खड़खड़ाने की आवाज़ आई. सिर्योझा ने फ़ाटक से भीतर देखा: करस्तिल्योव बोल्ट निकाल कर खिड़कियाँ खोल रहा था. उसने धारियों वाली कमीज़ पहनी थी, नीली टाई बांधी थी, गीले बाल खूब अच्छे से सँवारे थे. उसने खिड़कियों के बोल्ट खोले और मम्मा ने भीतर से पल्लों को धक्का दिया, वे खुल गए, और मम्मा ने करस्तिल्योव से कुछ कहा. उसने खिड़की की देहलीज़ पर कुहनियाँ टिकाते हुए जवाब दिया. उसने हाथ फैलाए और हथेलियों से उसका चेहरा दबाया. उन्हें होश ही नहीं था कि सड़क से बच्चे उनकी ओर देख रहे हैं.

सिर्योझा आँगन में गया और बोला:

“करस्तिल्योव ! मुझे फ़ावड़ा चाहिए.”

“फ़ावड़ा?...” करस्तिल्योव ने पूछा.

“और, सब कुछ,” सिर्योझा ने कहा.

“अन्दर आओ,” मम्मा ने कहा, “और जो चाहो ले लो.”

मम्मा के कमरे में तम्बाकू की और पराई साँसों की अजीब सी गंध फैली थी. पराई चीज़ें यहाँ-वहाँ फैली पड़ी थीं : कपड़े, ब्रश, मेज़ पर सिगरेट के टुकड़े...मम्मा चोटी खोल रही थी. जब वह अपनी लम्बी-लम्बी चोटियाँ खोलती तो गहरे भूरे रंग के अनगिनत छोटे-छोटे साँप उसे कमर के नीचे तक ढँक देते; और फिर वह उनमें कंघी करती है, जब तक कि वे सीधे नहीं हो जाते और गर्मियों की बारिश जैसे नहीं हो जाते...गहरे भूरे साँपों के पीछे से मम्मा ने कहा :

“गुड मॉर्निंग, सिर्योझेन्का.”

उसने जवाब नहीं दिया. वह डिब्बे देखने में मशगूल था. अपने नएपन और एक से होने के कारण वे उसका ध्यान खींच रहे थे. उसने एक डिब्बा उठाया, वह बन्द था, खुला नहीं.

“जगह पे रख दे,” मम्मा ने कहा, जो शीशे में सब कुछ देख रही थी. “तुम तो खिलौनों के लिए आए थे ना?”

क्यूब अलमारी के पीछे पड़ा था. उकडूँ बैठकर सिर्योझा उसे देख रहा था, मगर निकाल नहीं पा रहा था : हाथ वहाँ तक नहीं पहुँच रहा था.

“तू वहाँ क्या गड़बड़ कर रहा है?”

“मुझसे निकल ही नहीं रहा,” सिर्योझा ने जवाब दिया.

करस्तिल्योव भीतर आया. सिर्योझा ने उससे पूछा:

“तुम मुझे बाद में ये डिब्बे दोगे?”

(उसे मालूम था कि बड़े लोग बच्चों को डिब्बे तभी देते हैं, जब वो, जो डिब्बों में भरा होता है, उसे या तो खा लिया जाता है, या उसके कश लग चुके होते हैं.)

“ये लो, एडवान्स के तौर पर एक डिब्बा,” करस्तिल्योव ने कहा.

और उसने एक डिब्बे से सिगरेट्स बाहर निकाल कर डिब्बा सिर्योझा को दे दिया. मम्मा ने विनती की:

“उसकी मदद करो ना. अलमारी के पीछे उसका कुछ गिरा है.”

करस्तिल्योव ने अपने बड़े-बड़े हाथों से अलमारी को पकड़ कर खींचा – पुरानी अलमारी चरमराई, सरक गई, और सिर्योझा ने आसानी से अपना क्यूब निकाल लिया.

“शाबाश!” उसने प्रशंसा की दृष्टि से ऊपर, करस्तिल्योव को देखकर कहा.

और वह डिब्बा, क्यूब और जितने पकड़ सकता था उतने खिलौने सीने से लगाए चला गया. वह उन्हें पाशा बुआ के कमरे में ले गया और फ़र्श पर डाल दिया, अपने पलंग और शेल्फ के बीच में.

“तू अपना फ़ावड़ा भूल गया,” मम्मा ने कहा, “तुझे तो उसकी फ़ौरन ज़रूरत थी, और उसी को भूल गया.”

सिर्योझा ने चुपचाप फ़ावड़ा ले लिया और आँगन में चला गया. असल में अब खुदाई करने का उसका मन नहीं हो रहा था, उसे तो अब मिठाई और चॉकलेट्स के रैपर्स को नए डिब्बे में रखने की जल्दी हो रही थी; मगर कम से कम थोड़ी सी भी खुदाई न करना बुरा दिखता, क्योंकि मम्मा ने ऐसा कह जो दिया था.

सेब के पेड़ के नीचे ज़मीन भुरभुरी है और जल्दी से खुद जाती है. खोदते हुए उसने गहरे जाने की कोशिश की – क़रीब क़रीब पूरे फ़ावड़े की गहराई तक. ये काम वह डर के मारे नहीं बल्कि अपने विवेक से कर रहा था, मेहनत के कारण वह कराह रहा था, उसके हाथों के और खुली, धूप से सुनहरी हो गई पतली पीठ के स्नायु तन गए थे. करस्तिल्योव ऊपर छत पर खड़ा था, सिगरेट पीते हुए वह उसकी ओर देख रहा था.

लीदा प्रकट हुई – विक्टर को गोद में उठाए – और बोली:

“चलो, फूल लगाएँ. ख़ूबसूरत लगेगा.” 

उसने विक्टर को ज़मीन पर बिठाया, सेब के पेड़ से टिकाकर, जिससे वह गिर न जाए. मगर वह फ़ौरन गिर गया – एक करवट पर.

“ओह, तू, बैठ!” लीदा चिल्लाई, उसने विक्टर को झटका और फिर दबा कर बिठा गया. “बेवकूफ़ बच्चा. इस उम्र में दूसरे बच्चे तो बैठने भी लगते हैं.”

वह जानबूझ कर ज़ोर ज़ोर से बोल रही थी, जिससे छत पर खड़ा करस्तिल्योव सुन ले और समझ जाए कि वह कितनी सयानी और होशियार है. कनखियों से उसकी ओर देखते हुए वह गेंदे के फूल लाई और उन्हें सिर्योझा की खोदी हुई ज़मीन पर यह कहते हुए खोंस दिया:

“देख, कितना सुन्दर है!”

और फिर टब के नीचे से लाल-सफ़ेद छोटे-छोटे पत्थर लाई और उन्हें गेंदे के फूलों के चारों ओर बिछा दिया. उसने अपनी उँगलियों से मिट्टी झाड़ी और हथेलियाँ थपथपाईं, उसके हाथ काले हो गए थे.

“है ना सुन्दर?” उसने पूछा. “बोल, पर झूठ न बोलना.”

“हाँ,” सिर्योझा ने मान लिया, “सुन्दर है.”

“कैसा है रे तू!” लीदा ने कहा, “मेरे बिना कुछ नहीं कर सकता.”

अब विक्टर फिर से गिर पड़ा, इस बार सिर के बल.

 “ओह, लेटा रह, तेरी यही सज़ा है,” लीदा ने कहा.

विक्टर रोया नहीं, वह अपनी मुट्ठी चूस रहा था और चकित होकर पत्तियों की ओर देख रहा था जो उसके ऊपर सरसरा रही थीं. और लीदा ने कूदने वाली रस्सी निकाली जो उसने बेल्ट के बदले कमर पर बांध रखी थी, और वह छत के सामने रस्सी कूदने लगी, ज़ोर ज़ोर से गिनते हुए, “एक, दो, तीन...” करस्तिल्योव हँसने लगा और छत से चला गया..

“देख,” सिर्योझा ने कहा, “उसके ऊपर चींटियाँ रेंग रही हैं.”

“छिः, बेवकूफ़!” दुख से लीदा ने कह, उसने विक्टर को उठाया और उसके बदन से चींटियाँ साफ़ करने लगी, और इस सफ़ाई में उसकी कमीज़ और नंगे पैर काले हो गए.

“धोते रहते हैं, धोते रहते हैं उसे,” लीदा ने कहा, “मगर ये गन्दा का गन्दा ही रहता है.”

मम्मा ने छत से पुकारा:

“सिर्योझा! आ जा, कपड़े पहन ले, हमें बाहर जाना है.”

वह फ़ौरन भागा – बाहर कोई रोज़ रोज़ थोड़े ही जाते हैं. लोगों के घर जाना अच्छा लगता है, चॉकलेट्स देते हैं और खिलौने दिखाते हैं.

“हम नास्त्या दादी के यहाँ जा रहे हैं,” मम्मा ने समझाया, हालाँकि उसने पूछा नहीं था, कहीं भी क्यों न जाएँ, किसी के घर तो जा रहे हैं, यही अच्छी बात है.

नास्त्या दादी संजीदा और कड़े स्वभाव की है, सिर पर गोल गोल धब्बों वाला सफ़ेद रुमाल – ठोड़ी के नीचे बंधा हुआ. उसके पास एक मेडल है, मेडल पर लेनिन है. और उसके हाथ में हमेशा ज़िप वाली काली थैली होती है. वह थैली खोलती है और सिर्योझा को कोई बढ़िया चीज़ खाने के लिए देती है. मगर सिर्योझा उसके यहाँ कभी गया नहीं था.

वे सब तैयार हो गए – वो, और मम्मा, और करस्तिल्योव – और चल पड़े. करस्तिल्योव और मम्मा ने दोनों ओर से उसके हाथ पकड़े, मगर उसने जल्दी ही हाथ छुड़ा लिए : अपने आप चलना कितना अच्छा लगता है. कहीं रुक सकते हो और औरों की बागड़ की झिरी से झाँक कर देख सकते हो कि वहाँ खूँखार कुत्ता ज़ंजीर से बंधा बैठा है और बत्तख़ें घूम रही हैं. भाग कर आगे जा सकते हैं और वापस दौड़कर मम्मा के पास आ सकते हो. इंजिन की आवाज़ की नकल करते हुए भोंपू और सीटी बजा सकते हो. किसी झाड़ी से हरी फल्ली – सीटी – तोड़ो, और बजाओ – सीटी. ज़मीन पर गिरा हुआ सुनहरा सिक्का उठा लो, जिसे किसी ने गिरा दिया था. मगर जब तुम्हारा हाथ पकड़ कर ले जाते हैं तो सिर्फ हाथों में पसीना आता है, और कुछ भी मज़ा नहीं आता.

वे एक छोटे से घर की ओर आए जिसकी दो छोटी छोटी खिड़कियाँ सड़क पर खुलती थीं. आँगन भी छोटा सा था, और कमरे भी छोटे से. कमरों में किचन से होकर जाना पड़ता था, जिसमें भारी-भरकम रूसी भट्टी थी. नास्त्या दादी उनसे मिलने बाहर आई और बोली, “आपको बहुत बहुत मुबारक हो!”

बेशक, कोई त्यौहार ही होगा. ऐसे अवसरों पर पाशा बुआ जैसे जवाब देती थी, उसी अंदाज़ में सिर्योझा ने जवाब दिया, “आपको भी!”

उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई – खिलौने दिखाई नहीं दे रहे थे, कोई मूर्तियाँ-वूर्तियाँ भी नहीं थीं, जिन्हें सजावट के लिए रखा जाता है – सिर्फ बेकार की चीज़ें थीं – खाने की और सोने की. सिर्योझा ने पूछा, “आपके पास खिलौने हैं?”

(हो सकता है हों, मगर छिपा दिए गए हों.)

“वही एक चीज़ नहीं है,” नास्त्या दादी ने जवाब दिया. “घर में छोटे बच्चे नहीं हैं, इसलिए खिलौने भी नहीं हैं. तुम चॉकलेट्स खाओगे.”

मेज़ पर खूब सारे पिरोगों के बीच चॉकलेट्स की नीली काँच की बरनी रखी थी. सभी मेज़ के चारों ओर बैठ गए. करस्तिल्योव ने पेंचदार कांटे से बोतल खोली और वाईन ग्लासेस में लाल-काली वाईन डाली.

“सिर्योझा को मत देना,” मम्मा ने कहा.          

हमेशा ऐसा ही करते हैं : ख़ुद पीते हैं, और उसे – नहीं देना! जो भी सबसे अच्छी चीज़ होती है, उसे नहीं मिलती है.

मगर करस्तिल्योव ने कहा:

“मैं बस ज़रा सी दूँगा. उसे भी हमारी ख़ातिर पीने दो.”

और उसने सिर्योझा को भी छोटे से वाईन ग्लास में भर दी, जिससे सिर्योझा ने यह नतीजा निकाला कि उस पर भरोसा किया जा सकता है.

सभी ने जाम टकराए, सिर्योझा ने भी अपना जाम टकराया.

वहाँ एक और भी दादी थी. सिर्योझा को बताया गया कि यह सिर्फ दादी नहीं, बल्कि परदादी है; वह उसे इसी तरह बुलाए. मगर करस्तिल्योव उसे सिर्फ दादी कहकर पुकार रहा था, बगैर “पर - ” के. सिर्योझा को वह बिल्कुल अच्छी नहीं लगी. उसने कहा:

“वह कालीन पर गिरा देगा.”

उसने वाक़ई में थोड़ी सी वाईन कालीन पर गिरा ही दी थी, जब जाम टकरा रहा था. उसने कहा:

“देखो, मैंने पहले ही कहा था.”

और उसने गुस्से से फुनफुनाते हुए गीले धब्बे पर नमकदानी से नमक छिड़क दिया. और उसके बाद वह पूरे समय सिर्योझा पर नज़र रखे हुए थी. उसकी आँखें चश्मे के पीछे छिपी थीं. वह खूब बूढ़ी, जक्खड़ बूढ़ी थी. हाथ भूरे भूरे, झुर्रियों से भरे, जोड़ों पर फूले फूले थे, खूब बड़ी नाक नीचे को झुकी थी, और हड़ीली ठोड़ी - ऊपर की ओर.

वाईन मीठी और स्वादिष्ट थी. सिर्योझा गट् से पी गया. उसे पिरोग दिया गया, वह खाने लगा और खाते खाते उसे मसल दिया...परदादी ने कहा:

“तू कैसे खा रहा है?”

बैठने में बड़ा अजीब लग रहा था, वह कुर्सी में कसमसाने लगा. परदादी ने कहा:

“तू कैसे बैठा है?”

और अब उसे गरमी और जलन महसूस होने लगी, और गाना गाने का मन करने लगा. वह गाने लगा.

वह बोली, “अच्छे से चुपचाप बैठ.”

करस्तिल्योव ने सिर्योझा का पक्ष लेते हुए कहा, “छोड़िए. बच्चे को जीने दीजिए!”

परदादी गरजी, “थोड़ा ठहर जाओ, वह तुम्हें अपनी कारगुज़ारी दिखाएगा!”

उसने भी वाईन पी थी., चश्मे के पीछे उसकी आँखें वैसे भी चमक रही थीं. मगर सिर्योझा बहादुरी से उस पर चिल्लाया, “दफ़ा हो जा! मैं तुझसे नहीं डरता!”

“ओह, कितना भयानक!” मम्मा ने कहा.

“मामूली बात है,” करस्तिल्योव ने कहा, “अभी ठीक हो जाएगा. थोड़ी सी ही तो पी है उसने.”

“मुझे और चाहिए!” सिर्योझा चिल्लाया, उसने अपने जाम की ओर हाथ बढ़ाया और ख़ाली बोतल गिरा दी. शीशे के बर्तन खनखनाने लगे. मम्मा भौंचक्की रह गई. परदादी ने मेज़ पर मुट्ठी से वार किया और चीखी, “देख रहे हो, क्या हो रहा है!”

मगर अब सिर्योझा को झूलने का मन होने लगा. वह एक ओर से दूसरी ओर झूलने लगा. और पिरोग वाली मेज़ उसके सामने झूलने लगी, और मम्मा, और करस्तिल्योव , और नास्त्या दादी, बातें करते हुए झूल रहे थे, जैसे झूले पर बैठे हों – यह सब मज़ेदार लग रहा था. सिर्योझा ठहाका मार कर हँस पड़ा. अचानक उसे गाना सुनाई दिया. ये परदादी थी. अपने फूले फूले हाथ में चष्मा पकड़ कर, उसे ज़ोर ज़ोर से हिलाते हुए वह गा रही थी कि कैसे “कात्यूशा” नदी के किनारे पर आती है, गाना गाने लगती है : परदादी का गाना सुनते हुए सिर्योझा सो जाता है, पिरोग के टुकड़े पर सिर रख के.

....उसकी आँख खुली – परदादी वहाँ नहीं थी, और बाकी लोग चाय पी रहे थे. वे सिर्योझा की ओर देखकर मुस्कुराए. मम्मा ने पूछा, “आ गए होश में? अब और दंगा मस्ती तो नहीं करोगे?”

‘क्या मैंने दंगा मस्ती की थी?’ सिर्योझा ने अचरज से सोचा.

मम्मा ने पर्स में से छोटी से कंघी निकाली और सिर्योझा के बाल संवार दिए. नास्त्या दादी ने कहा, “अब चॉकलेट खाओ.”

बगल वाले कमरे में, चमकीले, धारियों वाले पर्दे के पीछे, जिसे दरवाज़े के बदले लगाया गया था, कोई खर्राटे ले रहा था : खुर्र! खुर्र!! सिर्योझा ने बड़ी सावधानी से परदा हटाया, भीतर झाँका और पाया कि वहाँ पलंग पर परदादी सो रही है. सिर्योझा हौले से परदे से दूर हटा और बोला, “चलो, घर चलें. अब मैं यहाँ बोर हो गया.”

बिदा लेते हुए उसने सुना कि करस्तिल्योव ने नास्त्या दादी को ‘मम्मा’ कहकर पुकारा. सिर्योझा को तो मालूम ही नहीं था कि करस्तिल्योव की मम्मा भी है, वह सोचता था कि करस्तिल्योव और नास्त्या दादी एक दूसरे को सिर्फ जानते हैं.

वापसी का रास्ता सिर्योझा को बड़ा लम्बा और उकताने वाला प्रतीत हो रहा था. सिर्योझा ने सोचा, ‘अगर करस्तिल्योव मेरे पापा हैं, तो वे मुझे उठाकर ले चलें’. उसने कई बार देखा था कि कैसे पापा लोग अपने बच्चों को कंधे पर बिठाकर ले जाते हैं. बच्चे बैठते हैं और अकड़ दिखाते हैं, और उन्हें, शायद ऊपर से दूर तक दिखाई देता होगा. सिर्योझा ने कहा, “मेरे पैर दुख रहे हैं.”

“बस, नज़दीक ही तो है,” मम्मा ने कहा, “थोड़ा बर्दाश्त करो.”

मगर सिर्योझा आगे से भागा और उसने करस्तिल्योव के घुटने पकड़ लिए.

“तू बड़ा है न रे,” मम्मा ने कहा, “गोद में उठा लो, यह कहने में शरम नहीं आती!”

मगर करस्तिल्योव ने सिर्योझा को उठाकर अपने कंधे पर बिठा लिया.

सिर्योझा ने देखा कि वह एकदम खूब ऊँचा हो गया है. उसे ज़रा सा भी डर नहीं लग रहा था : इतना बड़ा बलवान, जो बड़ी आसानी से अलमारी खिसका सकता है, उसे गिरा ही नहीं सकता. ऊँचाई से साफ़ दिखाई दे रहा था कि फेन्सिंग के पीछे आँगनों में और छतों पर क्या हो रहा है; बढ़िया दिख रहा है! इस आकर्षक दृष्य में सिर्योझा पूरे रास्ते व्यस्त रहा, सामने से अपने पैरों पर चले आ रहे बच्चों की ओर वह गर्व से देख रहा था. और अपनी इस नई फ़ायदेमन्द स्थिति का अनुभव करते हुए वह घर पहुँच गया – पिता के कंधे पर, जैसा कि बेटे को करना चाहिए.


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