शुभ मुहूर्त
शुभ मुहूर्त
अँधेरे कमरे में बैठी रिया खुद को कोस रही थी कि आखिर क्यूँ उसने चिराग पर शादी से पहले इतना विश्वास किया। अब अपने दो महीने का गर्भ वो छुपाये तो कैसे छुपाये ? अभी उसकी शादी में तीन महीने बाकी हैं .... यानी शादी तक पाँच महीने का पेट ?लोग कैसी - कैसी बाते करेंगे और माँ - बाप तो शर्म के मारे मर ही जायेंगे। सबसे बड़ी बात कि जिस चिराग पर उसने इतना विश्वास किया आज उसने ही उसे बीच रास्ते में छोड़ दिया। कहने लगा ," मैं जल्दी शादी को नहीं कह सकता .... माँ - बाप शुभ मुहूर्त में ही तो करेंगे। " शुभ मुहूर्त ... यहाँ साली जान जा रही है और उसे शुभ मुहूर्त की पड़ी है। " सोचते - सोचते रिया रो पड़ी। ये उसकी आखिरी रात थी क्योंकि अब आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा विकल्प उसके पास बचा ही नहीं था। आत्महत्या करना कोई आसान बात नहीं होती ... इंसान मरने से पहले अपने प्रियजनों को बहुत दिल से याद करता है। शायद रिया ने भी किया होगा .... अपने कमरे की बालकनी से वो डूबते सूरज को बहुत देर तक देखती रही और फिर एक आसान सी मौत की तलाश में घर में रखी फिनाइल की शीशी को मुँह से लगाकर औंधे मुँह बिस्तर पर लुढ़क गई। ढोल - नगाड़ों की तेज आवाज से रिया ने जब अगले दिन अपनी आँख खोली तो खुद को अस्पताल के एक कमरे में पाया। चिराग दूल्हा बना उसके सामने खड़ा था। बाहर खिड़की से सनशाइन का नजारा देखते ही रिया के मुस्कान भरे चेहरे से निकल गया , "आखिर शुभ मुहूर्त आ ही गया। "